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श्रीमद्वाग्भटविरचितं नेमिनिर्वाणम् : एक अध्ययन (३) नेमिनिर्वाण में वाग्भट ने राजा समुद्रविजय का वर्णन करते हुए लिखा है कि जिसकी शत्रुओं की नारियों के नेत्रकमलों में असन्धि कार्य प्रकट हो गया था। इसी प्रकार जानकीहरण में भी कुमारदास ने वर्णन किया है कि उस राजा दशरथ की यशोचन्द्रिका शत्रुओं की नारियों के नेत्ररूपी चन्द्रकान्तमणियों से जलस्रवण का कारण बनती हुई सम्पूर्ण विश्व में व्याप्त हो गई । इस सन्दर्भ में दोनों काव्यों का निम्नलिखित श्लोकार्ध तुलनीय है -
जानकीहरण -
___“तस्यारिनारीनयनेन्दुकान्तनिष्यन्दहेतुर्भुवनं ततान ।” नेमिनिर्वाण
____ “यवैरिनारीनयनारविन्देष्वसन्धिकार्य प्रकटीबभूव । ।२ भारवि का वाग्भट पर प्रभाव :
नेमिनिर्वाण काव्य यद्यपि भारविकृत किरातार्जुनीय के समान नारिकेलपाक नहीं है, किन्तु नेमिनिर्वाण पर किरातार्जुनीय का अनेक प्रसङ्गों पर प्रभाव दृष्टिगोचर होता है । महाकवि वाग्भट का नेमिनिर्वाण अनेक दृष्टियों से किरातार्जुनीय के समान काव्यगुणों से समन्वित है । किरातार्जुनीयके समानअर्थगांभीर्य न होने पर भी प्रकृतिवर्णन, अप्रस्तुतविधान, सरस श्रृंगारवर्णन, पदलालित्य, मध्यम समासशैली एवं कल्पना सम्पत्ति किसी भी स्थिति में नेमिनिर्वाण में किरातार्जुनीय से हीन नहीं है । निम्नलिखित स्थलों में नेमिनिर्वाण पर किरातार्जुनीय का प्रभाव
(२) नेमिनिर्वाण में वनविहार, पुष्पावचय, जलक्रीडा एवं रतिक्रीडा आदि के प्रसंग किरार्जुनीय के समान हैं।
(२) किरातार्जुनीय के पांचवे और पन्द्रहवे सर्ग में भारवि ने शब्दक्रीडा का प्रदर्शन किया है । वर्णन में चित्रमत्ता भी देखी जाती है । यथा -
“स्यन्दना नो चतुरगाः सुरेभा वा विपत्तयः । स्यन्दना नो च तुरगाः सुरेभा वा विपत्तयः । ।३
एवं "विकाशमीयुर्जगतीशमार्गणा विकाशमीयुर्जगतीशमनिणा ।
विकाशमीयुर्जगतीशमार्गणा विकाशमीयुर्जगतीशमार्गणा ।। किरातार्जुनीय की उक्त शब्दक्रीडा एवं चित्रमत्ता नेमिनिर्वाण में भी देखी जा सकती है। यथा -
"रम्भारामा कुरबककमलारम्भारामा कुरबक्रकमला ।
रम्भा रामाकुरवक कमलारम्भारामाकुरवककमला । । ५ नेमिनिर्वाण की यह शाब्दी क्रीडा एवं चित्रमत्ता स्पष्ट रूप से भारवि के किरातार्जुनीय से प्रभावित है। १. जानकीहरण,१/२५ २. नेमिनिर्वाण, १/६६ ३. किरातार्जुनीय, १५१६ ४. वहीं,१५/५२
५. नेमिनिर्वाण, ७/५०