Book Title: Nemi Nirvanam Ek Adhyayan
Author(s): Aniruddhakumar Sharma
Publisher: Sanmati Prakashan

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Page 238
________________ २२४ श्रीमद्वाग्भटविरचित नेमिनिर्वाणम् : एक अध्ययन किया गया है । यद्यपि कवि ने कल्पना से यथोचित परिवर्तन-परिवर्धन किया है, तथापि कहीं भी मौलिक परिवर्तन नहीं किया है। काव्यशास्त्रीय दृष्टि से नेमिनिर्वाण का संवेद्य एवं शिल्प अनुपम है । भाव पक्ष और कलापक्ष दोनों में ही वाग्भट सिद्धहस्त हैं । काव्यशास्त्रियों ने एक सफल महाकाव्य में जिन गुणों का रहना अनिवार्य स्वीकार किया है, नेमिनिर्वाण में उन सभी गुणों का सुष्ठुतया प्रयोग किया है । प्रायः सभी जैन चरित काव्यों मे अंगी रस के रूप में शान्त रस का ही परिपाक हुआ है, प्रायः अन्य सभी रसों की अंग रूप में व्यंजना हुई है । श्रृंगार के उभयपक्ष, रौद्र, वीर, करुण एवं अद्भुत रसों की अभिव्यक्ति में कवि को विशेष सफलता प्राप्त हुई है। - संस्कृत साहित्य में छन्दों का महत्त्वपूर्ण स्थान है । महाकवि वाग्भट ने वर्णनों को आकर्षक बनाने के लिए भावानुरूप छन्दों का सन्निवेश किया है । कवि ने पचास से भी अधिक प्रचलित-अप्रचलित छन्दों का प्रयोग कर पाण्डित्य का अनुपम परिचय दिया है । महाकवि वाग्भट की छन्दयोजना अतिविस्मयकारी है । उन्होंने ऐसे छन्दों का भी प्रयोग किया है, जिनका पता वृत्तरत्लाकर के प्रणेता केदारभट्ट को भी नहीं था । कालिदास आदि के महाकाव्यों में भी इनके द्वारा प्रयुक्त अनेक छन्द नहीं मिलते हैं। सातवां सर्ग तो छन्दों का अजायबघर है । इसमें कुल ४३ छन्दों का प्रयोग किया गया है तथा जिस पद्य में जिस छन्द का प्रयोग किया है, उसका नाम भी उसी में प्रस्तुत कर दिया है । नेमिनिर्वाण में प्रयुक्त छन्द इस प्रकार हैं - आर्या, सोमराजी, शशिवदना, अनुष्टुप, विद्युन्माला, प्रमाणिका, हंसरुत माधझंग, मणिरंग, बन्धूक, रुक्मवती, मत्ता, इन्द्रवजा, उपेन्द्रवजा, उपजाति, भ्रमरविलसिता, स्त्री, स्योद्धता, शालिनी, अच्युत, वंशस्थ, द्रुतविलम्बित, कुसुमविचित्रा, सग्विणी, मौक्तिकदाम, तामरस, प्रमिताक्षरा, भुजंगप्रयात, प्रियवंदा, तोटक, रुचिरा, नन्दिनी, चन्द्रिका, मंजुभाषिणी, मत्तमयूर, वसन्ततिलका, अशोकमालिनी, प्रहरणकलिका, मालिनी, शशिकलिका, शरमाला, हरिणी,-पृथिवी, शिखरिणी, मन्दाक्रान्ता, शार्दूलविक्रीडित, सन्धरा, चण्डवृष्टि, वियोगिनी और पुष्पिताया। महाकवि वाग्भट ने विभिन्न आयामों में विविध रूपों को प्रकट करने के लिए विविध अलंकारो द्वारा मनोरम एवं सौन्दर्यवर्धक चित्रों को अपनी लेखनी में संजोकर उन्हें अपने काव्य नेमिनिर्वाण में भिन्न भिन्न प्रकार से चित्रित करके अपने अलंकार कौशल को प्रकट किया है। शब्दालंकारों मे अनुप्रास की शोभा, यमक की मनोरमता, श्लेष की संयोजना तथा चित्रालंकारों की विचित्रता सहज ही पाठकों के हृदय को अलौकिक आनन्द प्रदान करती है । यमक अलंकार के भेद-प्रभेदों का प्रयोग करके उन्होंने यमक अलंकार में सिद्धहस्तता अधिगत की है । छठे सर्ग में सर्वत्र यमक का प्रयोग किया गया है। ... अर्थालंकारों के माध्यम से वर्णनीय विषयों की मंजुल अभिव्यंजना में महाकवि वाग्भट कुशल है । उन्होंने नेमिनिर्वाण में उपमा, उत्प्रेक्षा, सन्देह, रूपक, परिसंख्या, समासोक्ति,

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