Book Title: Nemi Nirvanam Ek Adhyayan
Author(s): Aniruddhakumar Sharma
Publisher: Sanmati Prakashan

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Page 237
________________ उपसंहार २२३ ३, मराठी के २, कन्नड के २, प्राकृत के ४, अपभ्रंश के ५, हिन्दी के लगभग १००, तथा गुजराती के २, लगभग १५० से भी अधिक नेमिनाथ विषयक काव्यों का परिचय दिया गया है। संख्या की दृष्टि से ही नहीं, भावों की दृष्टि से भी ये काव्य प्रभावशाली हैं। इनमें वाग्भटकृत मिनिर्वाण एवं विक्रमकृत नेमिचरित (नमिदूत) संस्कृत में लिखित महत्त्वपूर्ण काव्य हैं । वाग्भटकृत नेमिनिर्वाण ही शोध का आलोच्य विषय है । संस्कृत साहित्य के अनुशीलन से वाग्भट नामक तीन सुप्रसिद्ध विद्वानों का पता चलता है- १. अष्टांग हृदय के रचयिता, २. काव्यानुशासन नामक काव्यशास्त्री ग्रन्थ के रचयिता और ३. वाग्भटालंकार नामक प्रसिद्ध अलंकारशास्त्रीय ग्रन्थ के प्रणेता । जैन सिद्धान्त भवनआरा की हस्तलिखित प्रति (वि० सं० १७२७ में लिखित) के आधार पर ज्ञात होता है कि वाग्भटाल्कार के प्रणेता वाग्भट ही नेमिनिर्वाण महाकाव्य के भी प्रणेता हैं। नेमिनिर्वाण की हस्तलिखित प्रतियों में प्राप्त प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि वाग्भट प्राग्वाट (पौरवाड) कुल के थे तथा इनके पिता का नाम छाड था । इनका जन्म अहिच्छत्रपुर में हुआ था । अहिच्छत्रपुर की स्थिति विवादास्पद है, परन्तु महामहोपाध्याय श्री ओझा जी द्वारा मान्य नागौर (पुराना नाम नागपुर ) ही अहिच्छत्रपुर मानना अधिक उचित प्रतीत होता है । नेमिनिर्वाण एवं वाग्भटालंकार के मंगलाचरणों से स्पष्ट हो जाता है कि वे जैनधर्म की दिगम्बर परम्परा के अनुयायी थे। क्योंकि उन्होंने १९ वें तीर्थङ्कर को मल्लिका पुरुष रूप में वर्णन किया है तथा दिगम्बर मान्य १६ स्वप्नों का वर्णन किया है। ज्ञातव्य है कि श्वेताम्बर परम्परा १९ वें तीर्थङ्कर मल्लि को स्त्री स्वीकार करती है । कवि का अणहिल्लपट्टन के प्रतिविशेष स्नेह दिखाई पड़ता है । वे चालुक्यनरेश श्री जयसिंहदेव के आश्रित कवि थे। जयसिंह देव का समय १०९३ -११४३ ई० माना जाता है । अतः इनका समय भी इसके आस पास का ही होना चाहिये । जिन जैन कवियों ने संस्कृत के विकास में सहयोग दिया है, उनमें वाग्भट का महत्त्वपूर्ण स्थान है । वे बहुमुखी प्रतिभासम्पन्न विद्वान थे । अलंकारशास्त्र और साहित्य दोनों में उनकी अगाध पैठ थी । I नेमिनिर्वाण महाकाव्य का मूल स्रोत गुणभद्राचार्य द्वारा प्रणीत उत्तरपुराण हैं । यद्यपि उत्तरापुराण के पूर्व आचार्य यतिवृषभकृत तिलोयपण्णत्ती में भगवान् नेमिनाथ के चरित्र के कुछ सूत्र उपलब्ध होते हैं, परन्तु इसे नेमिनिर्वाण का मूल स्रोत स्वीकार नही किया जा सकता है । क्योंकि इसमें नेमिनाथ के माता-पिता का नाम, जन्मस्थान, केवलज्ञान एवं मोक्षप्राप्ति का दिग्दर्शन मात्र प्राप्त होता है। इसमें उनके जीवन की किसी भी घटना का वर्णन नही किया गया है । उत्तरपुराण में तीर्थङ्कर नेमिनाथ के जीवनचरित्र का सांगोपांग वर्णन हुआ है, अतः वही इसका मूल स्रोत है । वाग्भट ने नेमिनिर्वाण की कथावस्तु को महाकाव्यानुकूल स्वाभाविक एवं प्रभावक बनाने के लिए अपनी कल्पना से यत्किंञ्चित् परिवर्तन परिवर्धन भी किये हैं । उत्तर पुराण की मूल कथावस्तु एवं नेमिनिर्वाण का सर्गानुसार कथानक देकर परिवर्तन- परिवर्धन का संक्षिप्त वर्णन

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