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श्रीमद्वाग्भटविरचितं नेमिनिर्वाणम् : एक अध्ययन प्रमुख विशेषतायें क्या हैं? यह विवरण इसलिए आवश्यक समझा गया है ताकि वाग्भटकृत नेमिनिर्वाण की परम्परा का पूर्वापर परिचय भी प्राप्त हो सके।
रविषेणकृत पद्मचरित (७ वीं शताब्दी), जटासिंह नन्दि का वरांगचरित (८ वीं शताब्दी), गुणभद्राचार्यकृत उत्तरपुराण (९ वीं शताब्दी), वीरनन्दिकृत चन्द्रप्रभचरित, महासेनकृत प्रद्युम्नचरित एवं असगकृत वर्धमानचरित (१० वीं शताब्दी), वादिराजसूरिकृत पार्श्वनाथचरित एवं यशोधरचरित (११ वीं शताब्दी), कलिकालसर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य का कुमारपालचरित और वाग्भटकृत नेमिनिर्वाण (१२ वीं शताब्दी), तथा उदयप्रभसूरि का धर्माभ्युदय महाकाव्य या संघपतिचरित एवं महाकवि हरिचन्द्रकृत धर्मशर्माभ्युदय और जीवन्धरचम्मू (१३ वीं शताब्दी) भिन्न भिन्न शताब्दियों के प्रतिनिधि चरितकाव्य हैं । इनमें हेमचन्द्राचार्य के कुमारपालचरित और उदयप्रभसूरि के धर्माभ्युदय महाकाव्य का ऐतिहासिक तथ्यों के ज्ञान की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण स्थान है।
अनेक चरितकाव्यों के निर्माण की दृष्टि से ईसा की १४ वीं-१५ वीं शताब्दी का महत्त्वपूर्ण स्थान है । इन दो शताब्दियों में पचास से भी अधिक चरितकाव्यों का प्रणयन हुआ है । इनमें भट्टारक सकल कीर्ति ने अनेक चरितकाव्यों की रचना की है । विपुलकाव्यप्रणयन की दृष्टि से भट्टारक सकलकीर्ति प्रमुख हैं ।१६ वीं शताब्दी से लेकर १९ वीं शताब्दी तक लगभग चालीस चरित काव्यों की रचना हुई है किन्तु कोई महत्त्वपूर्ण उपलब्धि नहीं मानी जा सकती है । बीसवीं शताब्दी के श्री ज्ञानसागर जी महाराज (पूर्व नाम श्री भूरामल्ल शास्त्री) ने अनेक चरितकाव्यों की रचना की है, जिनमें जयोदय, वीरोदय, सुदर्शनोदय, समुद्रदत्तचरित आदि उत्कृष्ट कोटि के काव्य हैं । इनके काव्यों में भाषा, भाव एवं नवीन छन्द-निर्माण का अनुपम कौशल दृष्टिगोचर होता है । बिहारी लाल शर्मा का मंगलायतन भी उत्कृष्ट गद्यकाव्य है । इस प्रकार स्पष्ट हो जाता है कि जैन कवियों ने चरितकाव्यों के प्रणयन के माध्यम से संस्कृत साहित्य की महती सेवा की है । यहाँ यह ध्यातव्य है कि जैन चरितकाव्यों के निर्माण में जैनेतर सम्प्रदाय के विद्वानों ने भी रुचि ली है और एक ऐश्वर्यशाली परम्परा को प्रस्तुत किया है । ये कवि मूलतः प्राकृत भाषा की परम्परा को लेकर संस्कृत साहित्य के क्षेत्र में प्रविष्ट हुये हैं, फलतः इनके काव्यों में प्राकृत भाषा के पारम्परिक तत्त्व भी दृष्टिगत होते हैं । इन काव्यों के विश्लेषण से संस्कृत भाषा की व्यापकता के साथ ही उसका विशाल भण्डार भी समृद्धतर होगा।
भारत के धार्मिक जीवन को प्रभावित करने वाले महात्माओं ऋषि-महर्षियों, तीर्थङ्करों में तीर्थङ्कर नेमिनाथ का चिरस्थायी प्रभाव है । यही कारण है कि भारतवर्ष की प्रायः सभी भाषाओं में तीर्थङ्कर नेमिनाथ के जीवनचरित पर विभिन्न शैलियों में अनेक काव्य लिखे गये हैं । क्योंकि नेमिनाथ का आख्यान पार्श्वनाथ एवं महावीर की तरह ही अत्यन्त रोचक एवं घटनाप्रधान है। अनेक कवियों ने उनके पावन उपदेश को प्रचारित करने की भावना से सभी भारतीय भाषाओं में काव्यों का प्रणयन किया है । प्रस्तुत शोध प्रबन्ध में संस्कृत के लगभग ३०, राजस्थानी के