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नेमिनिर्वाण : प्रभाव एवं अवदान
२१३ मनस्वी की द्विविध वृत्ति तथा अन्य श्लोक में धन की त्रिविध गति का वर्णन किया गया है -
"कुसुमस्तबकस्येव द्वयी वृत्तिर्मनस्विनः । मूर्षि वा सर्वलोकस्य शीर्यते वनेऽथवा ।" "दानं भोगो नाशस्तिनो गतयो भवन्ति वित्तस्य ।
यो न ददाति न भुक्ते तस्य तृतीया गतिर्भवति । । नीतिशतक के इन दोनों श्लोकों की शैली का प्रभाव नेमिनिर्वाण में राजा समुद्रविजय के वर्णन में दृष्टिगत होता है -
“यस्मिन्भुवो भरि सत्यसन्धे त्रयी गतिभूमिभृतां बभूव ।
तत्पादसेवा मरणं रणे वा क्वचिन्निवासो विपुले वने वा ।।१२ कुमारदास का वाग्भट पर प्रभाव : (२) कुमारदासविरचित निम्नलिखित श्लोक -
“वयः प्रकर्षादुपचीयमानस्तनद्वयस्योद्ववहनत्रमेण ।
अत्यन्तकाय वनजायताझ्या मध्यो जगामेति ममैव तर्कः । ।३ का वाग्भटकृत नेमिनिर्वाण के निम्नलिखित श्लोक पर स्पष्ट प्रभाव है -
"दुरुद्वहस्तनभारधारणत्रमागमादिव तनुमध्यदेशया ।
परिष्कृतामनुकृतकल्पशाखया प्रभावतस्तनुलतया पवित्रया । । (२) कुमार दास कृत अयोध्यावर्णन का प्रभाव वाग्भटकृत द्वारवती नगरी के वर्णन में स्फुटरूप से परिलक्षित होता है । इस सन्दर्भ में जानकीहरण और नेमिनिर्वाण का अधोलिखित श्लोक तुलनीय है। जानकीहरण -
“आसीदवन्यामति भोगभाराद् दिवोऽवतीर्णा नगरीव दिव्या । क्षत्रानलस्थानशमी समृद्धया पुरामयोध्येति पुरी परार्ध्या । ।५
- एवम् नेमिनिर्वाण
“तत्र प्रसिद्धास्ति विचित्रहा रम्या पुरी द्वारवतीति नाम्ना। पर्यन्तविस्तारिविशालशालच्छायाछविर्यत्परिखापयोधिः । । ६
१. नीतिशतक, श्लोक २६, ३५ ३. जानकीहरण,१/३२ ५. जानकीहरण,१/१
२. नेमिनिर्वाण, १/६२ ४. नेमिनिर्वाण, २/३१ ६. नेमिनिर्वाण,१/३४