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नेमिनिर्वाण : प्रभाव एवं अवदान
२१५ (३) जिस प्रकार भारविकृत किरातार्जुनीय महाकाव्य का प्रारंभिक श्लोक "श्रियः कुरुणामधिपस्य पालनीम्-R का प्रारम्भ श्री शब्द से होता है, उसी प्रकार वाग्भटकृत नेमिनिर्वाण का प्रारंभिक श्लोक - "श्री नाभिसूनोः पदपङ्मयुग्मनखाः -२ श्लोक का प्रारम्भ भी श्री शब्द से होता है । इस प्रकार दोनों ही श्री से प्रारम्भ होने वाले प्रयादि काव्य हैं ।
इसी प्रकार वाग्भट की उक्तियाँ भी भारवि के समान ही स्वाभाविक तथा पाण्डित्य से परिपूर्ण हैं। माघ का वाग्भट पर प्रभाव : ___(१) कथानक रूढियों एवं वर्णन-सन्दर्भो में माघकृत शिशुपालवध का वाग्भटकृत नेमिनिर्वाण पर स्पष्ट प्रभाव है । यद्यपि माघ ने शिशुपालवध में शिशुपाल के पूर्व जन्मों के वर्णन प्रसंग में जैन कवियों के जन्मान्तरविवेचनवाद को ही अपनाया है, तथापि वाग्भटकृत नेमिनिर्वाण पर माघकृत शिशुपालवध के शिशुपाल के पूर्वजन्मों के वर्णन का प्रभाव परिलक्षित होता है।
(२) नेमिनिर्वाण के छठे सर्ग से दसवें सर्ग तक के वर्णन में शिशुपालवध की शैली की स्पष्ट छाया है । एक सर्ग में विविध छन्दों के प्रयोग में नेमिनिर्वाण यद्यपि शिशुपालवध से पूर्णतया प्रभावित है, तथापि नेमिनिर्वाण का वर्णन अधिक उत्कृष्ट है। : (३) नेमिनिर्वाण के निम्नलिखित दो श्लोकों -
"अथैकदा सदसि दिगन्तरागतरुपासितः क्षितिपतिभिर्महीपतिः । नभस्तलादवनितलानुसारिणीः सुराङ्गनाः स किल ददर्श विस्मितः ।। निरम्बुदे नभसि नु विद्युतः क्वचिनु तारकाः प्रकटितकान्तयो दिवा ।
सविस्मयैरिति नितरां जनैर्मुहुर्विलोकिताः पथि पथि बद्धमण्डलैः ।। पर शिशुपालवध महाकाव्य के अधोलिखित दो श्लोकों का स्पष्ट प्रभाव है
"श्रियः पति श्रीमति शासितुं जगज्जगन्निवासो वसुदेवसद्मनि । वसन्ददर्शावतरन्तमम्बराद् हिरण्यगर्भागभुवं मुनिं हरिः ।। गतं तिरश्चीनमरुसारथेः प्रसिद्धमूर्धज्वलनं हविर्भुजः ।
पतत्यधो धाम विसारि सर्वतः किमेतदित्याकुलमीक्षितं जनैः ।। उक्त श्लोकों से स्पष्ट है कि नेमिनिर्वाण में किया गया स्वर्ग से अप्सराओं के अवतरण का वर्णन शिशुपालवध में किये गये नारद के अवतरण के वर्णन के समान है।
१. किरार्जुनीय, १/१ ३. वही, २/२,२
२. नेमिनिर्वाण, १/१ ४. शिशुपालवध, १/२,२. . . .