Book Title: Nemi Nirvanam Ek Adhyayan
Author(s): Aniruddhakumar Sharma
Publisher: Sanmati Prakashan

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Page 225
________________ अध्याय - - नेमिनिर्वाण : प्रभाव एवं अवदान संस्कृत साहित्य में पद्यकाव्य के निबन्धन में कालिदास, कुमारदास, भारवि, माघ, हरिचन्द्र आदि महाकवियों का तथा गद्यकाव्य के निबन्धन में कविवर बाणभट्ट का महत्त्वपूर्ण एवं सर्वातिशायी स्थान है । पश्चाद्वर्ती सभी कवियों ने किसी न किसी रूप में इन महाकवियों का अनुगमन किया है । वह सार्वजनीन सत्य है कि प्रत्येक कवि चाहे वह कितना ही प्रतिभाशाली क्यों न हो, पूर्व - परम्परा से कुछ न कुछ अवश्य ग्रहण करता है । यद्यपि कवि किसी पूर्ववर्ती कवि का शब्द, अर्थ या भाव ज्यों का त्यों ग्रहण नहीं करता है, तथापि वह पूर्वकवियों से प्रभावित अवश्य होता है। परिणाम स्वरूप उसके काव्य में शब्दगत, अर्थगत या भावगत साम्य दृष्टिगोचर होता है । नेमिनिर्वाण के रचयिता महाकवि वाग्भट भी इसके अपवाद नहीं हैं । इनके नेमिनिर्वाण महाकाव्य में कालिदास आदि महाकवियों के काव्य-ग्रन्थों का प्रभाव परिलक्षित होता है। फलतः कहीं कहीं शब्दगत, अर्थगत या भावगत साम्य की झलक मिलती है । सात जिस प्रकार कवि अपने पूर्ववर्ती कवियों से कुछ ग्रहण करता है, उसी प्रकार परवर्ती कवियों को कुछ प्रदान भी करता है । महाकवि वाग्भट के नेमिनिर्वाण का वीरनन्दिकृत चन्द्रप्रभचरित तथा मुनिज्ञान सागरकृत सुदर्शनोदय आदि पर प्रभाव भी पाया जाता है। वीरनन्दि और मुनि ज्ञानसागर ने अपनी काव्यकृतियों में अनेक स्थानों पर वाग्भट के नेमिनिर्वाण का अनुकरण किया है। कालिदास का वाग्भट पर प्रभाव : यद्यपि कालिदास के काव्यों और वाग्भट कृत नेमिनिर्वाण के इतिवृत्त में कोई साम्य नहीं है, तथापि प्रकृतिचित्रण, भावाभिव्यञ्जन तथा कविपरम्परा के परिपालन में वाग्भट ने कालिदास से बहुत कुछ ग्रहण किया है । परिणामस्वरूप कालिदासंकृत अभिज्ञानशाकुन्तल, ऋतु-संहार आदि काव्यों का वाग्भटकृत नेमिनिर्वाण पर स्पष्ट रूप से प्रभाव है । (२) नेमिनिर्वाण में परोपकार का वर्णन करते हुए कहा गया है - १. द्रष्टव्य- नेमिनिर्वाण का षष्ठ सर्ग एवं कालिदासकृत ऋतुसंहार का वसन्त-वर्णन I (१) वाग्भट के द्वारा नेमिनिर्वाण में किया गया वसन्तऋतु का वर्णन कालिदास के द्वारा ऋतुसंहार में किये गये वसन्तऋतु के वर्णन के समान है । नेमिनिर्वाण के वसन्तवर्णन में कालिदासकृत वसन्तवर्णन का शैलीगत साम्य तो है ही, भावगत, अर्थगत तथा कहीं कहीं शब्दगत साम्य भी देखा जा सकता है ।

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