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नेमिनिर्वाण : दर्शन एवं संस्कृति - संस्कृति
२०३ के समुचित पोषण और विकास के लिए एक पृष्ठभूमि का निर्माण करता है । अतः मनुष्य के लिए समाज तथा परिवार का महत्त्वपूर्ण योगदान है । मातृस्नेह, पितृस्नेह, दाम्पत्य, आसक्ति, अपत्यप्रीति, साहचर्य परिवार के मुख्य स्तम्भ हैं । इन स्तम्भों पर ही परिवार का प्रासाद स्थित होता है।
नेमिनिर्वाण में राजा समुद्रविजय', रानी शिवादेवी, वसुदेव, गोविन्द (श्रीकृष्ण) उग्रसेन आदि के एक साथ रहने तथा परिवार के प्रति स्नेह को प्रकट करता है ।
राजा समुद्रविजय तथा रानी शिवादेवी का दाम्पत्य जीवन का सुन्दर चित्रण है । पति पली हृदय से एक दूसरे को प्रेम करते हैं ।
परिवार में भाई-भाई का अतिस्नेह तथा भतीजे के प्रति प्रेम तथा पिता पुत्र का अत्यधिक प्यार था । राजा समुद्रविजय ने अपने प्रति भाई की भक्ति से ही वसुदेव के पुत्र श्रीकृष्ण को युवराज बनाया।
अतः परिवार में सामान्यतः आज्ञाकारिता की भावना होती थी । पुत्र पिता की आज्ञा पालन करता था ।
तेरहवें सर्ग में नेमि के पूर्वभवों के वर्णनों में पुत्र का पिता तथा माता के प्रेम तथा भक्ति भावनाओं का परिचय मिलता है ।
माता-पिता सन्तान को सुशिक्षित और योग्य बनाते थे । नेमिनिर्वाण में पितृसत्तात्मक परिवार का ही चित्रण हुआ है।
परिवार में मनोरंजन के लिये जन्मोत्सव, अभिषेकोत्सव, विवाहोत्सव, जातकर्मोत्सव आदि आयोजन किये जाते थे । पिता का स्थान परिवार में प्रमुख था। विवाह :
विवाह का उद्देश्य जीवन के पुरुषार्थों को सम्पन्न करना है । गार्हस्थ जीवन का मुख्य उद्देश्य परसेवा, देवपूजा, मुनिधर्म का आश्रय, दानादि है । स्त्री के बिना पुरुष और पुरुष के बिना स्त्री अपूर्ण होती है । अतः विवाह का महत्त्व असंदिग्ध है । नीतिवाक्यामृत में कहा गया है कि अग्नि, देव और द्विज की साक्षीपूर्वक पाणिग्रहण क्रिया का सम्पन्न होना विवाह है।" समाज शास्त्र की दृष्टि से भी धार्मिक कृत्यों, समाज के प्रति दायित्वों का निर्वाह, सन्तानोत्पत्ति, स्त्री-पुरुष का यौन सम्बन्ध, विवाह के उद्देश्य हैं । १. नेमिनिर्वाण, १/५९
२. वही,१/५९
३. वह,१/७३ ४. वही,१/७३
५. वही,११/१
६. वहीं,१/७३ ७. युक्तितो वरणविधानमग्निद्विजसाक्षिकं च पाणिग्रहणं विवाहः।
नीतिवाक्यामृत ३/२