Book Title: Nemi Nirvanam Ek Adhyayan
Author(s): Aniruddhakumar Sharma
Publisher: Sanmati Prakashan

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Page 215
________________ २०१ नेमिनिर्वाण : दर्शन एवं संस्कृति - संस्कृति को प्राप्त हो गये तथा उन्होंने स्वर्ग में देवांगनाओं के द्वारा गाये जाते हुये अपने वध को बड़े कष्ट के साथ सुना । सैन्य : देश की रक्षा और राष्ट्र विरोधी शक्तिओं एवं शत्रु राजाओं के दमन के लिए राज्य में सैन्य विभाग तथा सहचारियों का होना अनिवार्य है । वास्तव में बल ही राज्य का आधार स्तम्भ होता है। सैन्य (बल) संगठन का उद्देश्य प्रजा का दमन करना नहीं है, अपितु देश रक्षा तथा राष्ट्र कंटकों का विनाश करना है। जैसा कि " नीति - वाक्यामृत" में कहा है कि जो शत्रुओं का निवारण करके, धन, दान और मधुर भाषाओं के द्वारा अपने स्वामी के समस्त प्रयोजन सिद्ध करके उसका कल्याण करता है, उसे बल (सैन्य) कहते हैं । नेमिनिर्वाण में सैन्य-सहचारिण शब्द का उल्लेख मात्र हुआ है । दुर्ग : शत्रु राजाओं से रक्षा करने की दृष्टि से राज्य की सीमाओं पर दुर्ग बनाया जाता था। इन्हीं दुर्गों में चुनी हुई सेना का निवास होता था, जो आक्रमणकारी शत्रु को नगर में प्रवेश से रोकती थी । अतः राजा के लिये दुर्ग बहुत महत्त्वपूर्ण है प्राचीन काल में दुर्ग नगर के रूप में तथा नगर दुर्ग के रूप में सन्निविष्ट होते थे । इसीलिए शब्द कल्पद्रुप में पुर का अर्थ दुर्ग, अधिष्ठान, कोट्ट तथा राजधानी लिखा है। प्राचीन काल में जब शासन पद्धति तथा शासन व्यवस्था के वे सुन्दर केन्द्रीय साधन अनुपलब्ध थे जिनसे किसी विशाल भू-भाग पर शासन की सुव्यस्था तथा शान्ति रक्षा का प्रबन्ध किया जा सके । विभिन्न बस्तियाँ, चाहे वे ग्राम हों अथवा नगर, अपनी अपनी रक्षा का उत्तरदायित्व स्वयं संभालती थी । अतः ये दुर्गम दुर्ग बनाये जाते थे । नेमिनिर्वाण में दुर्म नाम का प्रयोग हुआ है। परिखा : परिखा को खाई भी कहते हैं। नगर की सुरक्षा की दृष्टि से बनाई जाती थी जो नगर के चारों ओर होती थी जिससे शत्रु नगर के अन्दर प्रवेश न कर सके । कभी कभी एक से अधिक परिखायें भी बनाई जाती थी जो आवश्यकतानुसार होती थी । परिखा के जल में कभी कभी भंयकर जीवजन्तु भी छोड़ दिये जाते थे । नेमिनिर्वाण में परिखा का उल्लेख हुआ है कि द्वारावती नगरी के चारों ओर समुद्र की तरह (खाई) परिखा बनी थी । १. नेमिनिर्वाण, ९/६७ ४. पुरं कोट्टमधिष्ठानं कोट्टो स्त्री राजधान्यपि । ५. भारतीय स्थापत्य पृ० ६५, ६६ ६. नेमिनिर्वाण, १/२० २. नीतिवाक्यामृत २२.१ ३. नेमिनिर्वाण, ४/३४ शब्दकल्पद्रुम (भारतीय स्थापत्य पृ० ६६ ) ७. वही, १/३४

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