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नेमिनिर्वाण : दर्शन एवं संस्कृति - दर्शन ..
१९१ शरीर, मकान आदि के स्वच्छ रखने में होती है उसे आरम्भी हिंसा कहते हैं । जो आजीविका के लिये कोई योग्य व्यवसाय के करने में होती है वह उद्योगी हिंसा होती है, जो चोर आदि अत्याचारियों से अपनी व अपने धन जन की रक्षा में होती है उसे विरोधी हिंसा कहते हैं तथा जो हिंसा केवल किसी के प्राण लेने अथवा दुःख पहुँचाने के संकल्प के इरादे से की जाती है, उसे संकल्पी हिंसा कहते हैं । इन चार प्रकार की हिंसा में से गृहस्थ केवल संकल्पी हिंसा का त्यागी हो सकता है।
(२) अनृत
- प्रमाद के योग से जीवों को दुःखदायक अथवा मिथ्या रूप वचन बोलना असत्य है । अनृत चार प्रकार का है - अविद्यमान, पदार्थ का कथन करना, विद्यमान वस्तु का निषेध करना, विपरीत वचन तथा पीड़ाकारी एवं गर्हित वचन बोलना । (३) स्तेय
बिना दी हुई वस्तु का लेना स्तेय अर्थात् चोरी है । (४) अब्रह्म
___ मैथुन को अब्रह्म अर्थात् कुशील कहते हैं। स्त्री और पुरुष का जोड़ा मिथुन कहलाता है और चारित्र मोहनीय कर्म का उदय होने पर राग परिणाम से युक्त होकर उनके द्वारा की गई पर्शन आदि क्रिया (मैथुन) अब्रह्म है । (५) परिग्रह
किसी भी पर वस्तु में मूर्छा आसक्ति-ममत्व-लीनता परिग्रह है। परिग्रह के दो भेद हैं - अन्तरंग और बाह्य परिग्रह । अन्तरंग परिग्रह १४ प्रकार का है - मिथ्यात्व, क्रोध, मान, माया, लोभ, हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुसंकवेद । बाह्य परिग्रह १० प्रकार का है - क्षेत्र, वास्तु, सोना, चाँदी, धन, धान्य, दास, दासी, वस्त्र, बर्तन। इस प्रकार दोनों प्रकार का मिला कर परिग्रह २४ प्रकार का बताया है। कर्म :
महाकवि वाग्भट ने तीर्थङ्करों की स्तुति के प्रसंग में तीर्थङ्कर अरनाथ की स्तुति करते हुये इन्हें कर्मों से मुक्त होने के लिए नमस्कार किया है । कर्म सांसारिक बन्धन रूप हैं । ये सभी कर्म पुद्गल के परिणाम हैं अतः पर पदार्थ हैं । कर्मों से छुटकारा पाये बिना मुक्ति सम्भव नहीं है । कर्म दो प्रकार के होते हैं - द्रव्य कर्म और भाव कर्म ।
१. असदभिधानमनृतम्, तत्त्वार्थसूत्र ७/१४ ३. मैथुनमब्रह्म - तत्त्वार्थसूत्र ७/१६. ६. नेमिनिर्वाण, १/१८
२. अदत्तादानस्तेयम् । तत्त्वार्थसूत्र ७/१५ ५. मूच्छपिरिग्रहः । तत्त्वार्थ सूत्र ७/१७