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नेमिनिर्वाण : भाषा शैली एवं गुणसन्निवेश
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सुन्दरियों के मुख कमल को कुतूहल पूर्वक देखते हुए युवक ईर्ष्या पूर्वक कर्णों में प्रयुक्त कमलों की मार के सुख को बहुत समय तक अनुभव करते रहे ।
इस प्रकार इस श्लोक में समास छोटे होने से तथा प्रसाद गुण की अधिकता होने से काव्य सहज बोधगम्य है ।
गौडी रीति :
ओज को प्रकाशित करने वाले कठिन वर्णों से युक्त तथा दीर्घ समास से युक्त बन्ध गौड़ी रीति कहते हैं ।
निर्वाण के निम्न श्लोक को देखिये.
झलज्झलद्दिग्गजकर्णकीर्णैवातैरिवाशासु सदा प्रदीप्तः ।
यस्यारिभूभृद्वनवंशदाहे प्रतापवह्निः पटुतां बभार ।।
यहाँ पर कठिन वर्णों से युक्त तथा दीर्घ समास के कारण तथा ओज गुण की प्रधानता होने से गौड़ी रीति का सुन्दर चित्रण हुआ है ।
पांचाली रीति :
वैदर्भी एवं गौड़ी रीति के अवशिष्ट वर्णों से जो रचना की जाये अर्थात् जो वर्णन न तो माधुर्य का व्यंजक हो और न ओज का तथा जहाँ पर पाँच छः पदों तक समस्त पद हों वहाँ पांचाली रीति होती है । यथा निम्न श्लोक में यह रीति दृष्टिगत है -
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एतदुल्लसितसान्द्रपल्लवच्छन्नविद्रुमलतावलम्बितम् ।
भाति वेतसवनं करालितं वाडवेन शिखिनेव सर्वतः । ।
लाटी रीति :
वैदर्भी एवं पांचाली रीति के कुछ लक्षणों से युक्त होने पर लाटी रीति होती है।" यथानिम्न श्लोक को देखिये -
तत्र प्रसिद्धास्ति विचित्रहर्म्या रम्या पुरी द्वारवतीति नाम्ना ।
पर्यन्तविस्तारिविशालशालच्छायाछविर्यत्परिखापयोधिः ।।६
यहाँ पर प्रसादगुण युक्त वैदर्भी रीति से समन्वित अल्पसमास पद वर्ण माधुर्य व्यंजक है, किन्तु नीचे के दो चरणों में दीर्घ समास है, अतः यहाँ लाटी रीति प्रयुक्त है ।
१. ओजः प्रकाशकैर्वर्णैर्बन्ध आडम्बर पुनः समासबहुला गौड़ी । - साहित्यदर्पण, ९ / ३ २. नेमिनिर्वाण, १/६० ३. वर्णैः शेषैः पुनर्द्वयोः । समस्त पंचषट्पदो बन्धः पांचालिका मता । । - साहित्यदर्पण, ९/४
५. लाटी तु रीति वैदर्भी पांचाल्योरन्तरे स्थिता । - साहित्यदर्पण, ९/५
४. नेमिनिर्वाण, ४/५५ ६. नेमिनिर्वाण, १/३४