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श्रीमद्वाग्भर्टविरचितं नेमिनिर्वाणम् : एक अध्ययन
नायिका के कृत्रिमकोप में माधुर्य गुण देखिये - परिलंघनीयगगनान्तमागतस्तरणिर्बभूव सहसारुणप्रभः । कलुषीभवत्यनुकलं दिनात्यये प्रभुरप्युपैति यदिवानुगश्रियम् ।। करुण रस में माधुर्य गुण देखिये
श्रुत्वा वचस्तस्य स वश्यवृत्तिः स्फुरत्कृपान्तः करणः कुमारः । निवारयामास विवाहकर्माण्यधर्मभीरुः स्मृतपूर्वजन्मा । ।
अन्यत्र शान्त रस के विवेचन में भी सर्वत्र माधुर्य गुण दृष्टिगोचर होता है ।
ओज :
ओज का लक्षण करते हुये आचार्य मम्मट ने कहा है कि वीर रस में रहने वाली आत्म अर्थात् चित्त के रस की हेतुभूत दीप्ति ओज कहलाती है । यह सामान्यतः वीर रस में रहती है । परन्तु वीभत्स और रौद्र रसं में इसका आधिक्य विशेष चमत्कारजनक होता है । इसमें कठिन शब्द और लम्बे-लम्बे समासयुक्त पदों का प्रयोग किया गया है । इसी प्रकार साहित्यदर्पण में भी कहा है कि चित्त का विस्ताररूप दीप्तत्व ओज कहलाता है । यह वीर वीभत्स और रौद्र में क्रमशः बढ़ता जाता है । "
ओज के अभिव्यञ्जक वर्ण वर्ग के प्रथम अक्षर के साथ मिले हुये द्वितीय और तृतीय अक्षर के साथ लिखे हुए चतुर्थ अक्षर आगे या पीछे रेफ और ट ठ ड ढ श ष हैं । नेमि - निर्वाण में वीर और रौद्र रस में ओज गुण का प्रयोग किया गया है । राजा समुद्रविजय के वर्णन में ओजगुण द्रष्टव्य है -
झलज्झलद्दिग्गजकर्णकीर्णैर्वातैरिवाशासु सदा प्रदीप्तः । यस्यारिभूभृद्वनवंशदाहे प्रतापवह्निः पटुतां बभार ।। यदर्धचन्द्रापचितोत्तमांङ्गैरुद्दण्डदोस्ताण्डवमादधानैः । विद्वेषिभिर्दत्तशिवाप्रमोदैः कैः कैर्न दधे युधि रुद्रभावः ।।
१. नेमिनिर्वाण, ९/२ २. वही, १३/५
३. दीप्त्यात्मविस्तृतेर्हेतुरोजो वीररस स्थितिः,
वीभत्सरौद्ररसयोस्तस्याधिक्यं क्रमेण च ।। काव्यप्रकाश, ८/६९-७०
४. साहित्यदर्पण, ८/४
५. योग आद्यतृतीयाभ्यामन्त्ययो रेफ तुल्ययोः ।
टादिः शषौ वृत्तिदैर्ध्य गुम्फ उद्धत ओजसि ।। काव्यप्रकाश, ८ /७५ ६. नेमिनिर्वाण, १/६०-६१