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अध्याय-छः (क) नेमिनिर्वाण : दर्शन एवं संस्कृति
दर्शन "दर्शन" का अर्थ है "देखना" । “दृश्यतेऽनेनेति दर्शनम्' अर्थात् जिसके द्वारा देखा अर्थात् विचार किया जाए वह दर्शन है । दर्शन शब्द व्याकरण में दृश् धातु से करण अर्थ में “ल्युट्" प्रत्यय करने पर निष्पन्न होता है । संक्षेप में तत्त्वों के युक्तिपूर्वक सूक्ष्म ज्ञान के प्रयास को दर्शन कहा जाता है । विभिन्न भारतीय दर्शनों में प्रयुक्त सम्यक्दर्शन इसी अर्थ का परिचायक है।
भारतीय दर्शन की दो प्रमुख शाखायें - वैदिक और अवैदिक हैं । प्राचीन वर्गीकरण के अनुसार ये ही आस्तिक और नास्तिक कही जाती हैं । अवैदिक दर्शनों को नास्तिक इसलिए कहा जाता है कि वे वेदों को प्रामाणिक नहीं मानते (नास्तिको वेदनिन्दकः) । परन्तु यदि सूक्ष्म दृष्टि से विचार किया जाए तो हम देखते हैं कि सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक दर्शनों की उत्पत्ति भी पूर्णतया लौकिक विचारों से हुई है । वेद अविरोधी होने पर भी इनकी उत्पत्ति वैदिक विचारधारा से नहीं मानी जा सकती। अतः अवैदिक दर्शनों में जैन एवं बौद्ध दर्शन को नास्तिक कहना समीचीन नहीं है । क्योंकि ये दर्शन स्वर्ग, नरक, मुक्ति आदि पारलौकिक तत्त्वों में विश्वास रखते हैं । यदि पारिभाषिक रूप में वेद-विरोधी होने से कुछ दर्शनों को नास्तिक कहा जाता है तो चार्वाक, बौद्ध एवं जैन दर्शनों को नास्तिक कोटि में रखा जाना आश्चर्यजनक नहीं है । क्योंकि निश्चित रूप से ये तीनों दर्शन वैदिक विचारधाराओं से सहमत नहीं हैं।
प्राचीन परम्परा से भारतीय दर्शन का वर्गीकरण
भारतीय दर्शन आस्तिक
नास्तिक १. सांख्य
१. चार्वाक २. योग
२. बौद्ध ३. न्याय
३. जैन ४. वैशेषिक ५. मीमांसा
६. वेदान्त (उत्तरमीमांसा) १. सम्यक्दर्शनसम्पन्नः कर्मभिननिबध्यते ।
दर्शनन विहीनस्त संसार प्रतिपद्यते ।। - द्रष्टव्य - मनुस्मृति ६/७४ २. दु० - भारतीय दर्शन (एन इंट्रोडक्शन टू इन्डियन फिलास्फी का हिन्दी अनुवाद) चट्टोपाध्याय एवं दत्त
पृ० ३-४