________________
१०२
श्रीमद्वाग्भटविरचितं नेमिनिर्वाणम् ः एक अध्ययन
दिन वे रैवतक ( गिरणार) पर्वत पर बेला का नियम लेकर किसी बड़े भारी बाँस के वृक्ष के नीचे विराजमान हो गये । निदान आश्विन शुक्ला प्रतिपदा के दिन चित्रा नक्षत्र में प्रातःकाल के समय उन्हें समस्त पदार्थों के विषय करने वाला केवलज्ञान उत्पन्न हुआ । देवों ने केवलज्ञान कल्याणक का उत्सव कर उनकी पूजा की । हरिवंश पुराण में नेमिनाथचरित :
अतिमुक्तक मुनि के मुख से यह बात सुनकर कि हमारे वंश में २२ वें तीर्थङ्कर उत्पन्न होंगे, वसुदेव बहुत प्रसन्न हुये। उनकी प्रार्थना सुनकर अतिमुक्तक मुनि ने नेमिनाथ के पूर्वभवों का सविस्तार वर्णन किया ।
दशार्हो में मुख्य सौर्यपुर निवासी राजा समुद्रविजय की पत्नी के गर्भ में भगवान के आने से छः माह पहले से ही लेकर जन्मपर्यन्त पन्द्रह मास तक इन्द्र की आज्ञा से देवों ने धन की वर्षा जारी रखी । वह धन की वर्षा प्रतिदिन तीन बार साढ़े तीन करोड़ की संख्या का प्रमाण लिये हुए पड़ती थी ।
उसी समय पूर्वादि दिशाओं के अग्रभाग से आई हुई दिक्कुमारी देवियों ने परिचर्या द्वारा माता शिवादेवी की सेवा प्रारम्भ कर दी। इस प्रकार सेवा किये जाते हुये एक दिन रात्रि में सोते समय रानी ने उत्तम सोलह प्रकार के स्वप्न देखे । प्रथम स्वप्न में निरन्तर मद जल बहता हुआ इन्द्र का ऐरावत हाथी देखा, जिसके सब ओर से निरन्तर मद रूपी झरना बह रहा था और जिसने अपनी ध्वनि से दिशाओं को व्याप्त कर रखा था। दूसरे स्वप्न में अम्बिका का महावृषभ देखा जिसके सुन्दर सींग, कान्दालें ऊँची, खुर पृथ्वी को खोद रहे थे । साना लम्बी, आँखे दीर्घ, रंग सफेद, मेघ के समान गर्जना करने वाला नेत्रों का प्रिय था । तीसरे स्वप्न में पर्वतों को लाँघने वाला सिंह, चन्द्रमा की कला अथवा अंकुश के समान दहाड़ो को धारण करने वाला शरीर का अत्यन्त लम्बा, दश दिशाओं के अन्त में विश्राम करने वाला और जो घुमड़ते हुए मेघ के समान सफेद था, चौथे स्वप्न में वह लक्ष्मी देखी जो किसी हाथी के समान स्थूल 'स्तनों' से युक्त थी । शुभ हाथी घडों में रखे हुए जल से जिसका अभिषेक कर रहे थे। जो अपने हाथ में कमल लिये हुए थी और खिले हुए कमलों के आसन पर बैठी थी । पाँचवें स्वप्न में जागती हुई के समान शिवादेवी ने आकाश में लटकती हुई दो ऐसी उत्तम मालायें देखी जिन्होंने अपनी पराग से भ्रमरों के समूह को लाल कर दिया था । छठे स्वप्न में बादलों रहित आकाश के बीच में ऐसा चन्द्रमा देखा जो अपनी तीक्ष्ण किरणों से शान्ति के सघन अन्धकार को नष्ट करके उदित हुआ था । सातवें स्वप्न में ऐसा सूर्य देखा जिसका मुख सम्पूर्ण दिन दर्शनीय था । सन्ध्या की लाली रूपी सिन्दूर की पराग से पिंजर वर्ण था आठवें स्वप्न में उसने मत्स्यों का वह जोड़ा देखा, जो बिजली के समान चंचल शरीर का धारक मत्स्मी रूपी स्त्री के चंचल नेत्रों के समान, पारस्परिक स्नेह से भरा हुआ ईर्ष्या रहित
1