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नेमिनिर्वाण का संवेद्य एवं शिल्प : छन्द
१३७ उस शब्द योजना को कहते हैं, जो किसी विशेष नियम से अक्षर या मात्राओं के बन्धन में बन्धी हुई चलती हो।
लौकिक छन्दःशास्त्र पर अनेक ग्रन्थ मिलते हैं, किन्तु उनमें से महर्षि पिंगल का बनाया हुआ ग्रन्थ ही सबसे प्राचीन और प्रामाणिक माना जाता है । पिंगलाचार्य ने अपने महाग्रन्थ में एक करोड़ सड़सठ लाख सतहत्तर सहस्र दो सौ सोलह प्रकार के वर्णन पदों का उल्लेख किया है, जिनमें से लगभग पचास छन्द ही लौकिक संस्कृत काव्यों में प्रयुक्त हुये हैं।
छन्द दो प्रकार के होते हैं :- (१) मात्रिक और (२) वर्णिक । मात्रिक छन्द उसे कहते हैं, जिसके प्रत्येक चरण की नाप मात्राओं की गिनती से, तथा वर्णिक छन्द वह है, जिसके प्रत्येक चरण की नाप वर्णों या अक्षरों की गिनती से की जाये।
जिन छन्दों के चारों चरणों के वर्ण या उनकी मात्रायें समान हों, उन्हें समवृत्त कहते हैं । जिनके पहले-तीसरे और दूसरे-चौथे वर्णों की मात्रायें या वर्ण समान हों, उन्हें अर्द्धसम कहते हैं । जिन छन्दों के चारों चरणों की मात्राओं या वर्गों की संख्या भिन्न-भिन्न हो उन्हें विषमवृत्त कहते हैं।
छन्दों की योजना अथवा गीतों की योजना रस और भाव के अनुसार होनी चाहिये । महाकवि क्षेमेन्द्र ने अपने सुवृत्ततिलक ग्रन्थ में छन्द-योजना के सम्बन्ध में एक विशेष पद्धति की स्थापना करते हुए कहा है ___"सर्ग के प्रारम्भ में कथा के विस्तार में और शान्तिपूर्ण उपदेश में सज्जन लोग अनुष्टुप् का प्रयोग करते हैं । उपजाति छन्द में श्रृंगार तथा उसके आलम्बन नायक, नायिका के रूप का वर्णन और वसन्त ऋतु तथा उसके अंगों का वर्णन किया जाता है । विभाव अर्थात् चन्द्रोदयादि उद्दीपन में स्थोद्धता छन्द का और षाड्गुण्य नीति का वर्णन वंशस्थ में शोभा देता है । वीर और रौद्र के मेल के लिये वसन्ततिलका और सर्ग के अन्त में मालिनी का प्रयोग किया जाना चाहिये । परिच्छेद या विषय विभाजन के लिये शिखरिणी का प्रयोग किया जाय तथा उदाहरण, रूचि और औचित्य का विचार करने के लिए हरिणी का प्रयोग हो । राजाओं के द्वारा क्रोध तथा धिक्कार और वर्षा, प्रवास तथा दुःख में मन्दाक्रान्ता छन्द, राजाओं का शौर्य वर्णन करने में शार्दूल विक्रीडित, आंधी के वर्णन में स्रग्धरा एवं दोधक तथा मुक्तक सूक्तियों के लिये तोटक और नर्कुट छन्द होना चाहिये।
इस छन्द योजना के अनुसार महाकवि वाग्भट ने नेमिनिर्वाण में अनेक छन्दों का प्रयोग किया है । विभिन्न छन्दों का प्रयोग करने में महाकाव्यकार अतिकुशल हैं । वस्तुतः कवि ने सभी छन्दों का प्रयोग इस काव्य में किया है और कुछ ऐसे छन्द भी प्रयोग किये हैं, जिनका पता वृत्तरत्नाकर' के प्रणेता केदारभट्ट को भी नहीं था। कुछ छन्द ऐसे भी हैं, जिनका प्रयोग कालिदास भारवि, माघ तथा पश्चात्वर्ती वीरनन्दि और अर्हद्दास आदि के महाकाव्यों में भी नहीं मिलता।