________________
१४५
नेमिनिर्वाण का संवेद्य एवं शिल्प : छन्द
(१६) अमर विलसिताः यह ग्यारह वर्षों का छन्द है, जिसमें क्रमशः मगण. भगण, नगण तथा लघु गुरु होते हैं । यथा -
गौरा नित्यभ्रमरविलसिता, नव्याब्दानां ततिरतिसरसा ।
एषा क्षिप्ता खलु नगगुरुणा, शङ्के दृष्टिस्त्वयि सविकसना ।।। प्रयोग के अन्य स्थल - सप्तम सर्ग- ५०
(१७) स्त्रीः यह ग्यारह वर्षों का वृत्त है, इसमें क्रमशः भगण, तगण, नगण, तथा २ गुरु होते हैं । पांचवे तथा छठे वर्गों पर यति होती है । यथा -
__ भव्यजनानां विरचितयत्न प्राशुंतटोर्वीस्थलकमलेषु ।।
गौरवसीम्नि क्रियत इहोवैःप्रत्यवबोधो दिनकर पादैः ।। (१८) रथोद्धताः यह ग्यारह वर्षों का छन्द है । क्रमशः रगण, नगण, रगण, तथा एक लघु एवं एक गुरु होता है । यथा -
मौक्तिकेन शुचिकान्तिशोभिना गर्भवासनिभृतेन तेन सा ।
सिन्धुशुक्तिरिव शोभनीयतां नीयते स्म वसुधेशचेतसः ।। प्रयोग के अन्य स्थल - चतुर्थ सर्ग - २ से ६० तक सप्तम सर्ग- १४
(१९) शालिनीः शालिनी छन्द के प्रत्येक पाद में ग्यारह वर्ण होते हैं । ये क्रमशः मगण, दो तगण तथा दो गुरु के रूप में होते हैं । चार और सात पर यति होती है । यथा
पृथ्वीनाथस्योग्रसेनस्य पुत्री पात्रं कान्तेः सार्धमन्तःपुरेण ।
तत्रायाता क्रीडितुं मासि चैत्रे नेवानन्दं नेमिनाथं ददर्श ।। प्रयोग के अन्य स्थल - - सप्तम सर्ग - २९
एकादश सर्ग- १ से ५३ तक
(२०) अच्युतः यह छन्दःशास्त्रीय प्रचलित ग्रन्थों में अनुपलब्ध है । वाग्भट ने श्लोक में इसे अच्युत नाम से उल्लिखित किया है । इस वृत्त में ११ वर्ण होते हैं, जो क्रमशः रगण तथा सगण तथा अन्त में लघु गुरु होते है । यथा -
अच्युतं विलसन्मणिचक्रकः काननावलिभासुरविग्रहः ।
रोचिषा हरितेन महानसौ लोकनाथ विडम्बयते नगः ।। १. म्भौन्लौगः स्याद् भ्रमरविलसिता । वृत्तरत्नाकर, ३१२२ २. मिनिर्वाण,७/४९ ३. पंचरसैः स्वी भवनगगैः स्यात् । । वृ० र० ३/१२३
४. मिनिर्वण,७/३२ ५. रोनराविह रथोद्धता लगे, वृ०२० ३/१२४
६. नेमिनिर्वाण, ४/५ ७. शालियव्रता ततगौ गोन्धि लौकेः ।वृ० २०, ३१२० ८. नेमिनिर्वाण, ११/१ ९. नेमिनिर्वाण,७/४१