Book Title: Nemi Nirvanam Ek Adhyayan
Author(s): Aniruddhakumar Sharma
Publisher: Sanmati Prakashan

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Page 164
________________ १५० श्रीमद्वाग्भटविरचित नेमिनिर्वाणम् : एक अध्ययन क्रमशः चार भगण, एक सगण तथा एक गुरु होता है । यथा - भूतनिकायशुभप्रद मेरुगिरिसनाभौ, काननराजिभिरत्र हि मन्मथशरमाला । शश्वदीरितकोरकवीथिभिरुरुदेव, प्रेमणि संधियतेऽलिसपिच्छनिकरकाया ।। (४२) हरिणी : इस छन्द में छः, चार और सात पर यति होती है । क्रमशः नगण, सगण, मगण, रगण, सगण, लघु तथा गुरु होते है । यथा - इति हृदि यदा स्वप्नश्रेणीमचिन्तितदर्शनां, कलयति किल क्षोणीभर्तुः प्रिया प्रियसंयमा । रजनिविरतिव्याख्यादक्षस्तदा कतगीतिभिः, सुरयुवतिभिर्भूयो भूयोऽप्यताड्यत दुन्दुभिः ।। प्रयोग के अन्य स्थल - सप्तम सर्ग - १५,१६ (४३) पृथ्वी : जिसके प्रत्येक पाद में जगण, सगण, जगण, सगण, यगण एवं लघु गुरु हो, वह पृथ्वी कहा जाता है । यथा - स्वकान्तिजलमण्डलप्रथितबुदबुदभ्रान्तिभिः, सितैरसितरश्मिभिर्बहलशैवलोल्लासिभिः । नभस्तलनिपातिभिर्वसुभिराबभासे भृशं, सरोवरमिवायतं नृपतिनाथहाजिरम् ।। प्रयोग के अन्य स्थल - सप्तम सर्ग - १८ एकादश सर्ग - ५८ चतुर्दश सर्ग - ४८ (४४) शिखरिणी : यह सत्रह वर्णों का छन्द होता है । इसमें क्रमशः यगण, मगण, नगण, सगण, भगण तथा लघु गुरु होते हैं । यथा - यदूनामुत्तंस त्रिदशपरिचर्योक्तमहिम, न्सदैवास्मिन्दावज्वलनमतिदूरत्रसदिभम । लसद्विद्युद्दामा प्रशमयति संतापितनुगं, पयोधारासारैर्नवजलदमाला शिखरिणी ।।" प्रयोग के अन्य स्थल - त्रयोदश सर्ग - ८४ (४५) मन्दाकान्ता : इस छन्द के प्रत्येक चरण में क्रमशः मगण, मगण, नगण, तगण, तगण तथा दो गुरु होते हैं । इस प्रकार सत्रह वर्ण होते हैं । चार, छः और सात पर यति होती है । यथा मोहोन्मुक्तप्रतिभचमरी पुच्छसंमार्जितोर्वी, भव्याभासे सुमहति गिरावत्र चित्रार्थसानौ । द्वौ चन्द्रार्कावपि रमयते पुष्पवर्षेण मन्दा, क्रान्तावातैः क्षितिरूहततिः क्रान्तपर्यन्तश्रृङ्गः ॥ (४६) शार्दूलविक्रीडित : इस छन्द में क्रमशः मगण, सगण, जगण, सगण, तगण, तगण, एवं गुरु होते हैं । बारह और सात पर यति होती है । यथा - कामं संघटितेष्टकान्तविभवे राजत्तुलाकोटिके, प्रोतुङगस्तनयुग्महेमकलशे तत्कायदेवालये । तं देवं विहितावतारमचिरादागत्य सेन्द्राः सुराः सर्वे नेमुरनर्तिपुर्जगुरगुवैतालिकत्वं पुरः । ११ नेमिनिर्वाण,७/४० नेमिनिर्वाण, २/६० ५. नेमिनिर्वाण, ३/४७ ७. नेमिनिर्वाण, ७/६ ९. नेमिनिर्वाण, ७/२२ १९. नेमिनिर्वाण, ३/४६ २. रसयुगहयैन्सौ प्रौस्लौगो यदा हरिणी तदा । वृ० २०, ३/१८१ ४. जसौजसयलावसुग्रहयतिश्च पृथ्वी गुरुः ।। वृ० २०, ३/१७९ ६. रसैरुदैश्छिन्नायमनसभला गः शिखरिणी ।। वृ० र०, ३/१७८ ८. मन्दाक्रान्ताजलधिषडगम्भी नतौ ताद् गुरु चेत् । वृ० २०, ३/१८२ १०. सूर्योश्वैर्मसजस्तताः सगुरवः शार्दूलविक्रीडितम् । वृ० २०, ३/१०१

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