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नेमिनिर्वाण का संवेद्य एवं शिल्प : छन्द
१४९ प्रयोग के अन्य स्थल - प्रथम सर्ग - ८२ तृतीय सर्ग - २ से ४३ तक षष्ठ सर्ग - ५०,५१ सप्तम सर्ग - ५१, ५२, ५३, ५४, ५५ दशम सर्ग - ४५
एकादश सर्ग - ५४, ५५ द्वादश सर्ग - ७०
चतुर्दश सर्ग - ४७ पंचदश सर्ग - ८५
(३७) अशोकमालिनी : यह छन्द छन्दःशास्त्रीय प्रचलित ग्रन्थों में अनुपलब्ध है। वाग्भट ने श्लोक में इसे अशोकमालिनी नाम से उल्लिखित किया हैं यह चौदह वर्गों का वृत्त है । इसमें क्रमशः जगण, रगण, जगण, रगण, तथा लघु और गुरु होते हैं । यथा -
जलोरसिस्थपद्म पत्रकञ्धुकं वपू, रसाकुलं वहत्यसौस्फुरत्सितद्विजम् ।
अशोकमालिनी नदी यथा वधूर्वरा, लसद्रुणौघलोहितांशुकावृतान्वगम् ।।
(३८) प्रहरणकलिका : जिस छन्द के चारों पादों में क्रमशः दो नगण, एक भगण, एक नगण, एक लघु और एक गुरु होता है । उसे प्रहरणकलिका कहते हैं । यथा
अनुकृतविषमप्रहरणकलिका, क्षितिरुहनिवहैः परिलसदवनौ ।
भनिकरसदृशद्युतिरनुविपिनं, लसति सुविशदा बहुरिह हि नगे ।। (३९) मालिनी : जिस छन्द के प्रत्येक पाद में क्रमशः दो नगण, एक मगण तथा दो यगण हों तो वह 'मालिनी' छन्द होता है । इसमें आठ और सात पर यति होती है । यथा
द्विरदकरजलार्द्रद्वारमाचारनम्र, क्षितिपलुलितहारस्वस्तिकैः स्वस्तियुक्तम् ।
तरलतनयशून्यप्राङ्गणं वीक्षमाणो, भवनमवनिनाथ : काननं सोऽथ मेने ।।। प्रयोग के अन्य स्थल - ___ चतुर्थ सर्ग - ६२ सप्तम सर्ग - १२ - पंचम सर्ग - ७२ अष्ठम सर्ग - ८०
(४०) शशिकलिका : इसका नाम शशिकला भी मिलता है । यह १५ वर्णों का वृत्त है । जिसमें क्रमशः चार नगण और एक सगण होते हैं । यथा -
___ इह वसति विपुलगुणमणिरवनौ, विजलजलपटलधरधवलतनौ ।
सततसरिदनुकृतसुविकटजटे, धरणिभृति गिरिश इव शशिकलिका ।। (४१) शरमाला : यह छन्द छन्दः शस्त्रीय प्रचलित ग्रन्थों में अनुपलब्ध है । वाग्भट ने श्लोक में इसे शरमाला नाम से उल्लिखित किया है । यह १६ वर्णों का वृत्त है, जिसमें १. नेमिनिर्वाण, ३/2
२. नेमिनिर्वाण, ७/३८ ३. ननभनलगिति प्रहरणकलिका । वृ० र०, ३.१६३ ४ . नेमिनिर्वाण. ७/४८
ननमयययनेयं मालिनी भोगिलोके । वर०.३/१९१६ नेमिनिर्वाण,१८३ द्रिस्तावलपरवर्गात शशिकला ।। दृ० र०, ३/१६८ ८. नेमिनिर्वाण, ७/१२