Book Title: Nemi Nirvanam Ek Adhyayan
Author(s): Aniruddhakumar Sharma
Publisher: Sanmati Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 165
________________ नेमिनिर्वाण का संवेद्य एवं शिल्प : छन्द १५१ प्रयोग के अन्य स्थल - सप्तम सर्ग - ४५ नवम सर्ग - ५७ दशम सर्ग - ४६ (४७) स्रग्धरा ः स्रग्धरा २१ वर्णों का वृत्त है । इसमें क्रमशः मगण, रगण, भगण, नगण तथा तीन यगण होते हैं । सात-सात वर्णों पर यति होती है । यथा - आगत्यागत्य पुष्पस्तबकशतपतङ्गगभारावनम्र, भर्तः कान्तारमेतद्बकुलविटपिनां प्रेरिता मन्मथेन । दिव्यस्त्री स्रग्धरास्मिन्न भवति कतमा प्राप्य पुष्पावचायं, । श्रान्तस्वेदोदबिन्दुप्रकरहरपरा मन्दमन्दारवायौ ।।२ प्रयोग के अन्य स्थल - तृतीय सर्ग - ४५ (४८) चण्ड वृष्टि : जिस छन्द में क्रमशः दो नगण और सात रगण होते हैं, उसे चण्डवृष्टि या चण्डवृष्टि-प्रयात नामक दण्डक छन्द कहा गया है ।। २६ अक्षरों से अधिक अक्षरों वाले छन्द को दण्डक छन्द कहते हैं । यथा - कठिनगवलकज्जलश्यामलश्रीभृतामद्भुतैर्धातुभिर्धाजमानावनौ, रवभरकलिता बृहन्मर्दलाडम्बराणां ततस्तोकपुष्पौघलीलातरौ । कनकनिकषभास्वराकारविद्युल्लतामण्डितानाममुष्पिन्विशाले गिरौ, विबुधमिथुनकैर्गुहासु स्थितैर्नीयते चण्डवृष्टिर्घनानां क्वणन्तुम्बरौ ।। (४९) वियोगिनी : जिस छन्द के विषम अर्थात् प्रथम और तृतीय चरण में सगण सगण, जगण और गुरु हो तथा सम अर्थात् द्वितीय और चतुर्थ चरण में सगण, भगण, रगण, लघु और गुरु हो तो वियोगिनी छन्द होता है । यथा - अथ तत्र निवर्त्य दिक्पतीन्स सुरेन्द्राननुयायिनः प्रभुः । पृथ्वीभृति मुक्तिवर्तिनी मणिसोपान इवारुरोह सः ।।६ प्रयोग के अन्य स्थल - चतुर्दश सर्ग - २ से ४६ (५०) पुष्पिताग्रा : जिस के विषम पादों में दो नगण, रगण और यगण और सम पादों में नगण, दो जगण, रगण और एक गुरु होता है ऐसे अर्द्धसम छन्द को पुष्पिताग्रा छन्द कहते हैं । यथा - अथ नृपतिरुपेतहर्षपूरः पुरि परितोऽपि महोत्सवान्विधातुम् । सदसि समुपविश्य सेव्यमानः क्षितिपगणेन स दण्डिनं दिदेश ।। १. प्रश्नैर्यानां त्रयेण त्रिमनियतियता स्रग्धरा कीर्तितयम 1 व० २०.३/१९४ २ . नेमिनिर्वाण, ७/२० ३. यदिहनयुगलं ततः सप्तरेफस्तदा चण्डवृष्टिप्रयातो भवेद्दण्डकः । वृ० २०, ३/२०४ । नेमिनिर्वाण, ७/४६ ५. विपमेयदि सौ जगौ समे सभरालौ च तदा वियोगिनी । छन्दोमंजरी, ३/६ नेमिनिर्वाण, १४/१ ७. अयुजि नगरेफतो यकारो युजि च नजौ जरगाश्च पुष्षितामा । वृ० र०,४/२१८ ८. नेमिनिर्वाण, ३/४४ x u

Loading...

Page Navigation
1 ... 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252