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श्रीमद्वाग्भटविरचितं नेमिनिर्वाणम् : एक अध्ययन (२१) वंशस्थः यह बारह वर्गों का वृत्त है । इसमें क्रमशः जगण, तगण, जगण और रगण होते हैं । यथा -
प्रविश्य शच्या शुचि सूतिकागृहं समर्प्य मायामयमन्यमीदृशम् ।
प्रभुः कराभ्यां जगृहेऽथ मातृतः कृतप्रणामाय वराय चार्पितः ।। प्रयोग के अन्य स्थल - पंचम सर्ग - २ से ७१ तक षष्ठ सर्ग- ४७ सप्तम सर्ग - २३
(२२) दुतविलिम्बितः यह बारह वर्णो का वृत्त हैं । इसमें क्रमशः नगण, भगण, भगण तथा रगण ये चार गण होते हैं । यथा -
___ अथ मृगांक इवाभिनवोदितः प्रतिदिनं पृथितावयवोन्नतिः ।
स पितुरम्बुनिधेरिव संमदं प्रथयति स्म यतिस्मरणोचितः ।। प्रयोग के अन्य स्थल - षष्ठ सर्ग - २ से ४५ तक, ४९ सप्तम सर्ग - ४७
(२३) कुसुमविचित्राः यह बारह वर्णों का वृत्त हैं । इसमें क्रमशः नगण, यगण, नगण तथा यगण होते हैं । यथा -
इह परिविद्धा सुमदनबाणैः कुसुमविचित्रा तरुवरवीथी । ।
नवमधुमत्तं मधुपनिकायं न खलु विभर्ति प्रियमिव नेयम् ।। (२४) स्रग्विणी : यह बारह वर्णों का वृत्त है । इसमें चार रगण होते हैं । यथा
अत्र नित्यस्फुटत्पुष्पलीलातरौ किन्नरद्वन्द्वसंगीतरम्येगिरौ ।
काननान्यागता का न दिव्या वधूः स्रग्विणी जायते जातचेतोभवा ।। (२५) मौक्तिकदाम : यह छन्द छन्दःशास्त्रीय ग्रन्थों में अनुपलब्ध है । वाग्भुट ने श्लोक में इसे 'मोक्तिकदाम' नाम से उल्लिखित किया है । इसमें बारह वर्ण होते हैं तथा क्रमशः (चार भगण) भगण, भगण, भगण, भगण होते हैं । यथा
भस्मरजः परिकल्पितभक्तिकभद्रगजेन्द्र इवायमसंनिभ ।
भाति पुमानिव निर्मलमौक्तिमदाम दधत्सरिदावलिभिर्ननु ।। १. जतौ तु वंशस्थ मुदीरितं जग, वृ० २०, ३/१३२ २. नेमिनिर्वाण, ५/१ ३. द्रुतविलम्बितमाह नभौ भरी, वृ० र०, ३/४९
४. नेमिनिर्वाण, ६/१ ५. नयसहितौ न्यौ कुसुमविचित्रा । वृ० २०, ३/१३८ ६. नेमिनिर्वाण, ७/२७ ७. रैश्चतुर्भिर्युता स्रग्विणी सम्मता ।। वृ० २०, ३/१४३ . ८. नेमिनिर्वाण, ७/३९ ९. नेमिनिर्वाण, ७/३०