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श्रीमद्वाग्भटविरचितं नेमिनिर्वाणम् : एक अध्ययन (९) मणिरंग : यह दश-दश वर्णो का वृत्त है । इस छन्द में क्रमशः रगण, सगण, सगण, गुरु होता है । इसे मणिराग भी कहा जाता है । यथा -
अङ्गहारविधौ सुरवध्वा प्रस्तुते सविधस्थिततारम् ।
विभ्रतस्तपनामृतभासौ कोऽस्य नैव तटो मणुिरंग:२ ।। (१०) बन्धूक : यह छन्द, छन्दः- शास्त्रीय प्रचलित ग्रन्थों में अनुपलब्ध है । वाग्भट ने श्लोक में इसे बन्धूक नाम से उल्लिखित किया है । यह १० वर्णों का वृत्त है । इसके प्रत्येक चरण में दो भगण, एक मगण और अन्त में एक गुरु होता है । यथा -
__ अत्र महीभृति भूभृन्नाभौ गौत्रविभूषण पुष्यत्युच्चैः ।
काननराजिमुखेषु व्यक्तामोष्ठदलाकृतिका बन्धूकम् ।। (११) रुक्मवती : इस वृत्त में क्रमशः भगण, मगण, सगण तथा गुरु होता है । यह दश-दश वर्णों का वृत्त है । यथा -
चम्पकचूतैर्भूतलभागप्रापितपादैरव समस्ता ।
केन न जज्ञे सिंहनिनादक्ष्माभृति भूमी ‘रुक्मवतीयम्' ।।" (१२) मत्ता : यह दश-दश वर्णों का वृत्त है । इसमें क्रमशः मगण, भगण, सगण तथा गुरु होता है । यथा -
का न श्रीमन्नभिनवकामव्यालश्रेणी कलयति कुम्भौ । .
अस्मिन्मत्ता वरमणिजालौ वन्या लक्ष्मीरिव कुचतुङ्गौ ।।" (१३) इन्द्रवज्रा : यह वर्णिक छन्द है । वर्गों की संख्या के अनुसार इन्द्रवजा में ग्यारह वर्ण होते हैं, जिसमें तगण, तगण, जगण, एवं दो गुरु होते हैं । यथा -
पद्मासनस्थः स्फुटपद्मनेत्रः पद्मारुणश्रीधृति पद्मलक्ष्मा ।
पद्मप्रभो नः प्रभवेऽस्तु नित्यं पद्माप्रदानोद्यतपाणिपद्मः ।। प्रयोग के अन्य स्थल प्रथम सर्ग - ८,१२,१८, २२, २९, ३४, ३९, ४८,६३, ६४,६५, ६७,७९,८० षष्ठं सर्ग - ४६ सप्तम सर्ग - १७
. एकादश सर्ग - ५६ त्रयोदश सर्ग- ११,२३, ४४,४७,५०,५२,५४,६३,७०,७२,७५,८२, ८३
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३.वही,७/४
१. रश्च सौ सगुरुर्मणिरागः । वृत्तरत्नाकर, ३/१०९ ४. मौ सगयुक्तौ रुक्मवतीयम् ।। वृ० २०, ३/१०५ ६. ज्ञेयामत्ता मभ-स-ग युक्ता ।। वृ० र०, ३/१०६ ८. स्यादिन्द्रवजा यदि तौसजगौ गः, वृ० २०, ३/११४
२. नेमिनिर्वाण, ७/१३ ५. नेमिनिर्वाण, ७/१० ७.नेमिनिर्वाण, ७/११ ९.नेमिनिर्वाण,१/६