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निर्वाण का संवेद्य एवं शिल्प : छन्द ·
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(१४) उपेन्द्रवज्रा : इस छन्द में ग्यारह वर्ण होते हैं और क्रमशः जगण, तगण, जगण, और दो गुरु होते हैं । काव्यात्मक वर्णनों के लिए यह उपयोगी वृत्त है । यथा एकः प्रकृत्या जगतोऽनुकूलः प्रकाशमन्यः प्रतिकूल एव । अतः सतोऽनाप्यसतोऽनुवृत्तौ विशेषशाली भवति प्रयत्नः ।।
प्रयोग के अन्य स्थल -
प्रथम सर्ग -
५६
नवम सर्ग
५६
त्रयोदशसर्ग -
१९, २९, ५५, ५८
(१५) उपजाति : यह इन्द्रवज्रा और उपेन्द्रवज्रा का मिश्रित रूप है । इसमें एक, दो या तीन चरण इन्द्रवज्रा या उपेन्द्रवज्रा के होते हैं । इस प्रकार उपजाति अनेक प्रकार की हो
जाती है ।
१.
·
उपजाति बुद्धि : इस छन्द में चारों पादों में क्रमशः इन्द्रवजा, उपेन्द्रवजा, इन्द्रवजा होते हैं । यथा
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:
श्रीनाभिसूनोः पदपद्मयुग्मनखा सुखानि प्रथयन्तु ते वः । समं नमन्नाकिशिरः किरीटसंघट्टविस्रस्तमणीयितं यैः ।। प्रयोग के अन्य स्थल -
-
प्रथम सर्ग - त्रयोदश सर्ग -
प्रथम सर्ग - ९, २८, ५०, ७७
त्रयोदशसर्ग - ५१, ७४, ७७
२. उपजातिशाला : इस छन्द में क्रमशः इन्द्रवज्रा, इन्द्रवज्रा, उपेन्द्रवजा, होते हैं । यथा -
निःशेषविद्येश्वरमाश्रयामि तं बुद्धिहेतोरजितं जिनेन्द्रम् । अवादि सर्वानुपघातवृत्त्या येनागमः संगमितस्थितार्थः ।।७ प्रयोग के अन्य स्थल -
१६, १७, २३, ३१, ३६, ४७
२, ३, २४, ३९, ४५, ५२, ६४, ६५, ६६, ७१, ७३
१. उपेन्द्रवजा जतजास्ततोगौ - वृ० २०३ / ११५
३. 'एतयोः परयोश्च संकर उपजाति' एतयोः - इन्द्रवजोपेन्द्रवजयो
४. द्र० - वृत्तरत्नाकर, उपजाति पर पंचिका, पृ० १६३, छन्दोनुशासन, २ / १५६ ६. द्र० वृत्तरत्नाकर, उपजाति पर पंचिका, पृ० १६१
इन्द्रवजा
२. नेमिनिर्वाण, १/२६
५. नेमिनिर्वाण, १/१
७. नेमिनिर्वाण, १/२