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________________ निर्वाण का संवेद्य एवं शिल्प : छन्द · १४१ (१४) उपेन्द्रवज्रा : इस छन्द में ग्यारह वर्ण होते हैं और क्रमशः जगण, तगण, जगण, और दो गुरु होते हैं । काव्यात्मक वर्णनों के लिए यह उपयोगी वृत्त है । यथा एकः प्रकृत्या जगतोऽनुकूलः प्रकाशमन्यः प्रतिकूल एव । अतः सतोऽनाप्यसतोऽनुवृत्तौ विशेषशाली भवति प्रयत्नः ।। प्रयोग के अन्य स्थल - प्रथम सर्ग - ५६ नवम सर्ग ५६ त्रयोदशसर्ग - १९, २९, ५५, ५८ (१५) उपजाति : यह इन्द्रवज्रा और उपेन्द्रवज्रा का मिश्रित रूप है । इसमें एक, दो या तीन चरण इन्द्रवज्रा या उपेन्द्रवज्रा के होते हैं । इस प्रकार उपजाति अनेक प्रकार की हो जाती है । १. · उपजाति बुद्धि : इस छन्द में चारों पादों में क्रमशः इन्द्रवजा, उपेन्द्रवजा, इन्द्रवजा होते हैं । यथा - : श्रीनाभिसूनोः पदपद्मयुग्मनखा सुखानि प्रथयन्तु ते वः । समं नमन्नाकिशिरः किरीटसंघट्टविस्रस्तमणीयितं यैः ।। प्रयोग के अन्य स्थल - - प्रथम सर्ग - त्रयोदश सर्ग - प्रथम सर्ग - ९, २८, ५०, ७७ त्रयोदशसर्ग - ५१, ७४, ७७ २. उपजातिशाला : इस छन्द में क्रमशः इन्द्रवज्रा, इन्द्रवज्रा, उपेन्द्रवजा, होते हैं । यथा - निःशेषविद्येश्वरमाश्रयामि तं बुद्धिहेतोरजितं जिनेन्द्रम् । अवादि सर्वानुपघातवृत्त्या येनागमः संगमितस्थितार्थः ।।७ प्रयोग के अन्य स्थल - १६, १७, २३, ३१, ३६, ४७ २, ३, २४, ३९, ४५, ५२, ६४, ६५, ६६, ७१, ७३ १. उपेन्द्रवजा जतजास्ततोगौ - वृ० २०३ / ११५ ३. 'एतयोः परयोश्च संकर उपजाति' एतयोः - इन्द्रवजोपेन्द्रवजयो ४. द्र० - वृत्तरत्नाकर, उपजाति पर पंचिका, पृ० १६३, छन्दोनुशासन, २ / १५६ ६. द्र० वृत्तरत्नाकर, उपजाति पर पंचिका, पृ० १६१ इन्द्रवजा २. नेमिनिर्वाण, १/२६ ५. नेमिनिर्वाण, १/१ ७. नेमिनिर्वाण, १/२
SR No.022661
Book TitleNemi Nirvanam Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAniruddhakumar Sharma
PublisherSanmati Prakashan
Publication Year1998
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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