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परिवर्तन एवं परिवर्द्धन
११९ से किया है, गुणभद्रकृत उत्तरपुराण से नहीं । तथापि नेमिनिर्वाण में कुछ घटनाओं पर उत्तरपुराण का भी प्रभाव दृष्टिगोचर होता है । नेमिनिर्वाण में उल्लिखित नेमिनाथ भगवान् के
जन्म की तिथि श्रावणशुक्ला षष्ठी उत्तरपुराण के आधार पर वर्णित की गई है। ३. हरिवंशपुराण में नेमिनाथ के पूर्वभवों का विस्तृत वर्णन आया है, किन्तु वाग्भट ने
नेमिनिर्वाण में पूर्वभवावलि का वर्णन प्रासंगिक कथाओं के नियोजन के रूप में केवल त्रयोदशसर्ग में अत्यन्त संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत किया है । फलतः कथावस्तु के
पल्लवन के लिए अपेक्षित प्रासंगिक कथायें इस काव्य में नहीं आ पाई हैं। ४. हरिवंश में राजीमती के दर्शन एवं पशुओं के करुण क्रन्दन की दो मर्मस्पर्शी घटनायें
आई हैं । महाकवि वाग्भट ने महाकाव्य के अनुकूल इन दोनों घटनाओं को पर्याप्त
सरस और मार्मिक बनाकर विस्तार-पूर्वक प्रस्तुत किया है ।। ५. हरिवंशपुराण में वसन्त, रैवतक, जलक्रीडा, सूर्योदय, चन्द्रोदय, सुरतक्रीडा, मदिरापान
प्रभृति का वर्णन या तो हुआ ही नहीं है अथवा संक्षेप में वर्णित हुआ है । महाकवि वाग्भट ने नेमिनिर्वाण में प्रसंगानुकूल इनका विस्तृत वर्णन किया है ।
इस प्रकार दोनों कथावस्तुओं के अन्तर को देखने से पता चलता है कि महाकवि वाग्भट ने मूल कथावस्तु जिनसेन हरिवंशपुराण से ली है तथा अपनी कथावस्तु में कोई विशेष परिवर्तन-परिवर्द्धन नहीं किया है । केवल नाममात्र का परिवर्तन-परिवर्द्धन हुआ है, कोई मौलिक नहीं । कथावस्तु के गठन में न्यूनता है । नेमिनाथ के जन्म, तप, ज्ञान एवं निर्वाण का वर्णन सीधे एवं सरल रूप में करने से गाम्भीर्य की कमी खटकती है । कथानक के गठन की दृष्टि से कुछ कमी होने पर भी कथावस्तु के मार्मिक घटनाक्रम को विस्तार देने का प्रयास किया गया है । फलतः शैथिल्य होने पर भी महाकाव्य की कथावस्तु में छिन्नता नहीं मानी जा सकती
१.स पुनः श्रावणे शुक्लपक्षे षष्ठी दिने । उत्तरपुराण; ७१/४९