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निर्वाण का संवेद्य एवं शिल्प : रस
को धारण नहीं किया था । अर्थात् सभी ने किया था ।
वीर रसः वीर रस का स्थायी भाव उत्साह है। विजय आलम्बन और उसकी चेष्टायें उद्दीपन विभाव हैं, भुजाओं का फड़कना, आँखों का लाल होना आदि अनुभाव तथा गर्व स्मृति आदि संचारी भाव हैं ।
निर्वाण के प्रथम सर्ग में वीरता का समावेश है । उत्साह का संचार रहने से समुद्रविजय के चरित्र में वीरता व्याप्त है । राजा की वीरता के समक्ष शत्रु नरेशों की तीन स्थितियाँ होती थी । चरण सेवा, रण में मृत्यु और वनवास । कवि ने समुद्रविजय की प्रशंसा करते हुये कहा है कि :
यस्मिन्भुवो भर्तरि सत्यसन्धे त्रयी गतिर्भूमिभृतां बभूव ।
तत्पादसेवा मरणं रणे वा क्वचिन्निवासो विपुले वने वा ।।'
सत्य प्रतिज्ञा वाले जिस राजा के पृथ्वी का स्वामी रहने पर राजाओं की तीन गतियाँ हुई - उसके चरणों की सेवा, युद्ध में मृत्यु अथवा गहन वन में निवास । यस्मिञ्जगज्जेतरि याचकेभ्यो ग्रामाननन्तान्वितरत्यजस्रम् । स्पर्धानुबन्धादिव भूरिदेशत्यागं वितेनें यदरातिवर्गः । ।
संसार को जीतने वाले जिस (समुद्रविजय) के रहने पर याचकों के लिये गाँवों को निरन्तर प्रदान किया गया और शत्रुओं के समूह ने मानों स्पर्धा के कारण ही देश -त्याग को प्राप्त किया ।
श्रोतुं यशः कान्तमशक्नुवन्तस्तद्वैरिणो ये युधि मृत्युमीयुः ।
तैः कष्टमश्रावि वधः स्व एव दिव्याङ्गनाभिर्दिवि गीयमानः ।।३
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उसके (समुद्रविजय के) सुन्दर यश को सुनने में असमर्थ होते हुये उसके जो शत्रु युद्ध में मृत्यु को प्राप्त हो गये उन्होंने स्वर्ग में देवांगनाओं के द्वारा गाये जाते हुये अपने वध को बड़े कष्ट के साथ सुना ।
करुण रसः
करुण रस का स्थायी भाव शोक है विनष्ट बन्धु आदि शोचनीय व्यक्ति आलम्बन विभाव, दाह कर्मादि, हिंसादि उद्दीपन विभाव, निन्दा रोदन आदि अनुभाव तथा निर्वेद, ग्लानि, चिन्ता आदि व्यभिचारी भाव हैं ।
नेमिनिर्वाण में करुण रस को उत्पन्न करने में त्रयोदश सर्ग की एक मुख्य घटना है जिसमें नेमि के विवाह के समय पशुओं के वध के लिये बांधने के कारण उनका चीत्कार शब्द सुनकर नेमि का करुणभाव होना तथा हिंसा आदि को त्याग, ग्लानि, निर्वेद, चिन्ता आदि भावों का प्रकटीकरण हैं ।
१. नेमिनिर्वाण, १/६२
२. नेमिनिर्वाण, १ / ६५
१ . वही, १ / ६७