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नेमिनिर्वाण का संवेद्य एवं शिल्प : रस
१२५ जैन काव्यों की यही विशेषता रही है कि उनमें अंगीरस प्रायः शान्त ही रहा है, क्योंकि चतुर्थ पुरुषार्थ अर्थात् मोक्ष ही उनका साध्य है । भव्य पुरुष किसी निमित्त को पाकर ही वैराग्य को प्राप्त हो जाता है और तपश्चरण आदि से (मोक्ष) उत्कर्ष को प्राप्त करते हैं ।
नेमि निर्वाण' महाकाव्य में शान्त रस का अनेक स्थानों में प्रयोग हुआ है । कवि ने तीर्थङ्कर नेमिनाथ की विरक्ति कि सन्दर्भ में इस रस की योजना की है । नेमिनाथ के विवाह के समय, पशुओं के चीत्कार ने उनके हृदय को द्रवित कर दिया, वे विवाह के वस्त्राभूषण को छोड़ तपश्चरण के लिये वन को चले जाते हैं । इस सन्दर्भ को कवि ने बहुत ही मार्मिक बनाया है । नेमिनाथ सोचते हैं कि :
परिग्रहं नाहमिमं करिष्ये सत्यं यतिष्ये परमार्थसिद्धयै । विभोग-लीला मृगतृष्णिकासु प्रवर्तते कः खलु सद्विवेकः ।। विभोगसारङ्गहृतो हि जन्तु परां भुवं कामपि गाहमानः ।
हिंसानृतस्तेयमहावनान्तर्बम्श्राम्यते रेचितसाधुमार्गः ।। मैं विवाह नहीं करूगाँ परमार्थ सिद्धि के लिये प्रयत्न करूगाँ । कौन सद्विवेकी भोग रूपी मृगतृष्णा में प्रवेश करेगा । भोगरूपी सारंग पक्षी से हृतप्राणी हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील, परिग्रह को करता हुआ अपने साधु कर्म को छोड़ देता है।
आत्मा प्रकृत्या परमोत्तमोऽयं हिंसां भजन्कोपनिषादकान्ताम् । धिक्कारभाग्नो लभते कदाचिदसंशयं दिव्यपुरप्रवेशम् ।। दानं तपो वा वृषवृक्षमूलं श्रद्धानतो येन विवर्ध्य दूरम ।
खनन्ति मूढाः स्वयमेव हिंसाकुशीलतास्वीकरणेन सद्यः ।। यह आत्मा प्रकृति से उत्तम है, पर क्रोधोत्पादक हिंसा का सेवन करता हुआ धिक्कार का भागी बनता है और स्वर्ग (निर्वाण) आदि को प्राप्त नहीं करता ।
जो दान और तपरूपी धर्म-वृक्ष पर श्रद्धा न करते हुये दूर तक नहीं बढ़ते हैं, वें मूर्ख हैं और हिंसा, कुशीलादि का सेवन कर धर्म-वृक्ष की जड़ को खोद डालते हैं । जो व्यक्ति द्रव्य या भाव हिंसा करता है उसे दुर्गति में जाना पड़ता है । अतएव विवेकी को जागरूक बनकर धर्म का सेवन करना चाहिए ।
उपर्युक्त उदाहरणों में भगवान् नेमिनाथ आलम्बन विभाव हैं । यहाँ पर पशुओं का करुण क्रन्दन उद्दीपन विभाव है । एकाग्र मन से परमार्थ-सिद्धि करना अनुभाव तथा विवाह न करना संचारी भाव है । इन विभाव, अनुभाव एवं व्यभिचारी भावों से शम स्थायीभाव की अभिव्यक्ति होती है । अतः यहाँ पर शान्त रस है। १. नेमिनिर्वाण, १३/८,९ २. वही, १३/१०,११