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श्रीमद्वाग्भटविरचितं नेमिनिर्वाणम् : एक अध्ययन अंग रस :
“नेमिनिर्वाण” काव्य में अंगीरस शान्त रस के अतिरिक्त श्रृंगार, वीर, रौद्र, करुण, अद्भुत आदि रसों का भी अंग रूप में प्रयोग हुआ है । महाकवि वाग्भट ने जहाँ एक ओर शान्त एवं कोमल श्रृंगार आदि रसों की समायोजना की है वहीं वीर, रौद्र आदि रसों का भी सफल चित्रण किया है। श्रृंगार रस :
श्रृंगार रस का स्थायी भाव रति है, नायक या नायिका आलम्बन विभाव, एकान्त, चन्द्रमा, भ्रमर, उपवन आदि उद्दीपन विभाव, कटाक्ष, स्मित, आदि अनुभाव और हर्षादि संचारी भाव हैं। इसके संभोग और विप्रलम्भ दो भेद हैं । नेमिनिर्वाण में श्रृंगार रस के दोनों ही पक्षों (संभोग, विप्रलम्भ) का बड़ा ही सजीव चित्रण किया है । संयोग (संभोग) श्रृंगार :
कवि ने प्रेमियों के मन में संस्कार रूप से वर्तमान रति या प्रेम को आस्वादन योग्य बनाकर श्रृंगार रस का नियोजन किया है । “रात्रि में सुख विहार के समय यादवों द्वारा सम्पन्न की गई विलास क्रीड़ाओं के अवसर पर संभोग श्रृंगार की सुन्दर योजना की है । प्रकृति के रम्य वातावरण में यदुवंशी नायिकायें, नायकों के लिये सुख निधि के समान थी । प्रेमी-प्रेमिकाओं की विविध क्रीडायें संयोग श्रृंगार के अन्तर्गत ही समाहित हैं यथा :
अमृतोपमाधरदलाः कलस्वराः सुकुमारविग्रहभृतः सुदर्शनाः । अथ धूपनात्सुरभयो नतध्रुवः सकलेन्द्रियार्थनिधयोऽभवन्नृणाम् ।। तुहिनांशुना मदनबालबन्धुना हृतमत्सरान्धतमसाःसुमध्यमाः ।
व्यसृजन्निजेशमनसां प्रसादनप्रतिपत्तिपात्रमथ दूतिकाजनम् ।। अमृतोपम, अधर, रम्य शब्द, कोमल शरीर, सुन्दर आकार, सुगन्धित श्वास, एवं लज्जित नेत्र वाली नायिकायें नायकों के लिये इन्द्रियों के सुखार्थ निधि के समान थी । काम के बन्धु चन्द्रमा ने मत्सर रूपी अन्धकार को नष्ट करने वाली सुन्दर कटि वाली नायिकाओं को मनाने के लिये तत्कार्य में दक्ष दूतिकाओं को नियुक्त किया है और भी :
नलिनीदलानि न न हारयष्टयस्तुहिनांशवो न न जलार्द्रमंशुकम् । त्वदृते तदङ्गपरितापशान्तये विपदोऽथवा स्वजनसंगभेषजाः ।। अनुरागमायतदृशः कृशेतरं त्वयि न प्रियंवदतया वदामि तम् ।
लिखितत्वदाकृतिरनेकशस्तया रतिवासभित्तिरपि तेऽभिधास्यति ।।२ "हे प्रियतमे! तुम्हें छोड़कर कमल दल, हारयष्टि, चन्द्रकिरण जलार्द्र वस्त्र अथवा उत्तम १. नेमिनिर्वाष, ९/४६,४७ २. वही, ९/४९, ५०