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श्रीमद्वाग्भटविरचितं नेमिनिर्वाणम् : एक अध्ययन मत्स्ययुगल, सोने के कलश-युगल, नील कमलों से शोभित जलाशय, ऊँची-ऊँची, तरगों वाला महासागर जो मूँगे, मोती, मणियों, से सजा हुआ था। से युक्त नीलवर्ण की मणि वाला लक्ष्मी का सिंहासन, विचित्र विमान जो बेलबूटों, ध्वजाओं, एवं लटकती हुई चंचल मणियों से उज्ज्वल था तथा नागराज का ऐसा भवन देखा जो चारों ओर मणियों के प्रकाश से अन्ध कार को नष्ट कर रहा था, उत्तम रत्नों की ऐसी राशि देखी जो पद्म रागमणि तथा चमकते हुए हीरों वाली, मणियों से व्याप्त इन्द्रधनुष से आकाश को स्पर्श करने वाली थी, अन्तिम स्वप्न में शिखाओं से भयंकर, उज्ज्वल किरणों से दिशाओं को चमकाने वाली, धूमरहित जलती हुई विशुद्ध अग्नि को देखा ।
तृतीय सर्ग :
खिलते हुए नेत्ररूपी कमलों की मुस्कराहट वाली स्वप्नों के अतिशय दर्शन से आश्चर्यचकित उस महारानी के समक्ष सार्थक वचनों से किसी सुन्दरी देवागंना ने प्रभात की सूचना देते हुए इस प्रकार कहा हे देवी ! विशेष राग पाने के कारण तारागण रूपी पुष्पमाला के मन्द हो जाने से यह रात्रि आकाश शय्या को छोड़ रही है । चन्द्रमा चन्द्रबिम्ब रूपी बहती हुई प्रभात कालीन वायु से आहत होकर अस्त हो रहा है । चकोर की वाणी से मिश्रित अमृत नष्ट हो गया है तथा कैरव पुष्पों का जीवन नष्ट हो गया है। उड़ते हुए भ्रमर तोरण के समान प्रतीत हो रहे हैं । इस समय संसार में कौन धृष्ट चंचलता को प्राप्त नहीं कर लेता । सूर्य के हरित् वर्ण के घोड़े क्रोध के कारण अत्यन्त लाल कपोल पंक्ति की लीला को धारण कर रहे हैं । हे देवी! तुम्हारे जगाने के लिए इन देवांगनाओं के द्वारा चारों ओर गाये जाते हुए गीतों को सुनकर मदमस्त से होकर ये दीपक इस समय बारम्बार अपने सिरों को धुन रहे हैं और निश्चय ही ये भौरे अपनी आवाज के बहाने किसी कुमुदनियों के प्रति अपराधी हुए किसी वशीकरण मन्त्र का उच्चारण कर रहे हैं। अब यह नवीन सूर्य किरणों से संसार को कुम-कुम द्वारा लीप (सजा) रहा है और अन्धकार रूपी कीचड़ में फँसी हुई पृथ्वी का पर्वत रूपी उन्नत श्रृंगों से उद्धार करते हुए सूर्यदेव ने हजारों किरणों को फैलाकर अपना सार्थक नाम प्राप्त किया
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उन्नत स्तनों वाली गोप बालिकाएं जिनकी चंचल वेणी हिल रही है, दधिमन्थन द्वारा गम्भीर शब्द करती हुई गोरस (मक्खन) तैयार कर रही हैं और अरुण-काल सर्पमणि के समान लग रहा है । इस प्रकार प्रातःकालीन सुन्दर चित्रण को गाते हुए वे देवांगनायें कहने लगीं कि वे श्री जिनदेव तुम्हारा प्रातः काल मंगलमय करें, जो अत्यन्त दीर्घतर तपस्या के द्वारा सिद्धि को प्राप्त की तरह हैं, जिनका स्मरण करके कलुषित दोष - विष से रहित हो जाते हैं। जिनके निर्मल शरद्कालीन चन्द्रमा के समान सुन्दर तीनों छत्र तीनों लोकों के स्वामित्व को प्रकट करते हैं । जो शोभायमान निर्मल तथा तेजस्वी आकृति वाले हैं। इस प्रकार भगवान के गुणों को