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सर्गानुसार कथानक द्वितीय सर्ग :
इसके बाद एक बार राजा समुद्रविजय के सभामण्डप में अनेक दिशाओं से आये हुये राजाओं के द्वारा पूजा किये जाते हुए उस राजा ने आकाश मार्ग से पृथ्वी पर उतरती हुई देवांगनाओं को अत्यन्त आश्चर्यपूर्वक देखा । बादलरहित आकाश में क्या यह बिजलियाँ हैं या प्रकट कान्ति वाले तारे हैं । इस प्रकार वे समूह बनाकर मनुष्यों के द्वारा बड़े ही आश्चर्य से देखी गयी।
अनेकों रमणीयताओं से युक्त, ऐश्वर्यशालिनी तथा अनेकों आश्चयों को उत्पन्न करती हुई वे अप्सरायें राजा की सभा में उतरी तथा राजा के समीप पहुँच कर उज्ज्वल दाँतों की कान्ति रूपी वस्त्र से ढके हुये अपने क्षत अधरों से तथा दाहिने हाथ उठाये हुये “जय” शब्द किया।
अनुपम रूप-सम्पदा वाली उन अप्सराओं को राजा के सेवकों द्वारा उत्तम आसन प्रदान किये गये तथा इसके बाद राजा ने गंभीर स्वर में उन अप्सराओं से उनके पृथ्वीतल पर आने के विषय में पूछा।
राजा के इस प्रकार पूछे जाने पर अप्सराओं में प्रमुख लक्ष्मी ने कहा कि हे राजन् ! नमि जिनेन्द्र तीर्थंकर से ५ लाख ६ माह बीत गये हैं । अतः मुनियों ने कहा है कि दूसरे जिनेन्द्र उत्पन्न होंगे।
अतः मंगलों को धारण करने वाले आपके पवित्र वंश में संसार के तीनों गुणों वाले धर्म मंगल को धारण करने वाले प्रभु नेमि पुत्र रूप में उत्पन्न होंगे।
तदनन्तर इन्द्र ने याद दिलाने के लिये भेजी गयी हमें महारानी शिवादेवी की सेवा करने के लिये आज्ञा दी है । ऐसा राजा से निवेदन किया ! महारानी शिवादेवी के गर्भ में तीर्थङ्कर का जीव आने वाला है । अतः वे तीर्थङ्कर की माता की सभी प्रकार से सेवा करेंगी । देवांगनायें महारानी की प्रसन्नता के लिये संगीत एवं अभिनय प्रस्तुत करने लगी तथा नमस्कारपूर्वक अत्यन्त प्रसन्न महारानी शिवादेवी की सेवा करने लगी।
तीनों लोकों की युवतियों में अनुपम गुणों से युक्त उस शिवादेवी की, सुन्दर रीति से देवागंनाओं के द्वारा आदर पूर्वक सेवा की गई।
इसके बाद एक दिन देवागंनाओं के द्वारा जैन धर्म की अद्भुत कथा कहे जाने पर सुखपूर्वक सोती हुई उस पतिव्रता महारानी ने रात्रि के अन्तिम समय में इन सोलह सुन्दर आश्चर्यजनक स्वप्नों को देखा । जो क्रमशः इस प्रकार हैं - मद जल युक्त इन्द्र का ऐरावत हाथी, वृषभराज, पर्वतों को लाँघनेवाला विचित्र सिंह कान्तिमान सुन्दर आभूषणों वाली लक्ष्मी, फूलों की दिव्य दो मालायें, बादलोरहित आकाश में सुन्दर चन्दमा जो अन्धकार को नष्ट कर रहा था । पराग पर भौरे से युक्त नवीन पुष्प, दर्शनीय सूर्यमण्डल को आकाश में,