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१०२. नेमीश्वर गीत (हर्ष कीर्ति) इस रचना में नेमिनाथ का वर्णन है ।
१०३. नेमिनाथ बारहमासा ( हर्ष कीर्ति)
श्रीमद्वाग्भटविरचितं नेमिनिर्वाणम् : एक अध्ययन
इस बारहमासा में नेमिनाथ का सुन्दर चित्रण हुआ है ।
रचयिता : रचनाकाल
इन तीनों रचनाओं के रचयिता हर्षकीर्ति थे । ये १७ वीं शताब्दी के चतुर्थ पाद के कवि
थे । ये राजस्थानी सन्त, तथा भट्टारकों से प्रभावित थे ।
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१०४. नेमि राजुल प्रकरण ( रनकीर्ति)
यह गीतरूप रचना है, जिसमें नेमि राजुल प्रकरण ही प्रमुख रूप से प्रस्तुत किया गया है । इन गीतों की आत्मा में नेमि राजुल उसी प्रकार हैं, जिस प्रकार मीरा के कृष्ण रहे हैं । रचना महत्त्वपूर्ण है ।
रचयिता : रचनाकाल
इस प्रकरण के रचयिता भट्टारक रत्नकीर्ति हैं जो अपने समय के प्रमुख सन्त थे । उनका पूर्णतः वैरागी जीवन था । इनके गीत १७ वीं शती में बहुत लोकप्रिय रहे और समस्त देश में गाये जाते थे । इसके अतिरिक्त कवि की अन्य रचनायें भी उपलब्ध हैं जो इस प्रकार हैंनेमजी दयालु डरे तू तो यादव कुल सिणधारे । नेमिनाथ विनती । ७
नेम हम कैसे चले गिरनार । नेमि तुम जावो धारिय धरे ।६
नेमिनाथ फागु
नेमिनाथ बारहमासा ।”
१०५. चुनड़ी गीत ( ब्रह्म जयसागर )
इसका दूसरा नाम चारित्र चुनड़ी भी दिया गया है । जिसमें राजीमती नेमिनाथ से चारित्र चूड़ी ओढ़ने के लिए मांग रही है । नेमि गिरनार के भूषण है । चूनड़ी में १६ पद्य हैं ।" १०६. नेमीश्वर गीत " ( ब्रह्म जयसागर )
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यह भी एक लघुकाय रचना है ।
रचयिता : रचनाकाल
चूनड़ी गीत एवं नेमीश्वरगीत के रचयिता ब्रह्म जयसागर थे जो भट्टारक रत्नकीर्ति के
१. भट्टारक रत्नकीर्ति एवं कुमुदचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कृतित्व पृ० - १३
२. वही, पृ० ५३
३. वही, पृ० ५३
५. वही, पृ० ५१
६. वही, पृ० ५०
९. वही, पृ० ५०
८. वही, पृ० ५० ११. वही, पृ० - ६८
४. वही, पृ० - ५०
७. वही, पृ० ५१
१०. वही, पृ० ९६