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तीर्थडर नेमिनाथ विषयक सााहत्य १३८६-१४९२ ई०) तक का माना है । इनका संस्कृत अपभ्रंश तथा राजस्थानी पर पूर्ण अधिकार था । ये संस्कृत तथा प्राकृत के संरक्षक तथा प्रचार-प्रसार करने वाले भी थे। १५२. हरिवंशपुराण (ब्रह्म जिनदास)
इस ग्रन्थ का दूसरा नाम नेमिनाथ रास भी है । कवि ने अपने संस्कृत में लिखे गये पुराण के आधार पर ही राजस्थानी भाषा में इस काव्य को भी रचा है। रचयिता : रचनाकाल
इसके रचयिता भी श्री ब्रह्म जिनदास हैं । इस काव्य रचना का समय वि० सं० १५२० (सन् १४६३ ई०) है । १५३. नेमीश्वर रास (श्री ब्रह्मजिनदास)
यह एक राजस्थानी भाषा में रचित रास रचना है। रचयिता : रचनाकाल
इस रास के रचयिता ब्रह्म जिनदास हैं ।
मराठी
१५४. नेमिनाथ भवान्तर (महीचन्द्र)
इसमें नेमिनाथ के पूर्व भवों का वर्णन किया गया है। रचयिता : रचनाकाल
यह कवि महीचन्द्र द्वारा रचित काव्य है, जिसका समय लगभग वि० सं० १६१८ (सन् १५६१) है। १५५. नेमिनाथ भवान्तर (कवि सहवा)
इस कृति में भी नेमिनाथ के पूर्वभवों का वर्णन किया गया है। रचयिता : रचनाकाल
इस कृति के रचयिता कवि सहवा हैं । इन्होंने वि० सं० १६३९ (सन् १५८२ ई०) में इस काव्य की रचना की थी।
कन्नड़
१५६. नेमिनाथ पुराण (कवि कर्णपाथी
११४० ई० के लगभग कवि कर्णपार्थ ने नेमिनाथ पुराण की रचना की है. जिसमें नेमिनाथ
१. तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य परंपरा, भाग-३, पृ०-३३० २. वही, पृ० - ३४० ३. वही, पृ० - ३४० ४. वही, भाग-४, पृ० - ३२२