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तीर्थङ्कर नेमिनाथ विषयक साहित्य
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महाभिषेक किया था । नेमिनाथ फाग की रचना गुजरात के हासारे नगर में हुई थी । भट्टारक रत्नकीर्ति ने गुजरात के ही घोघा नगर में "नेमिनाथ बारहमासा” लिखा था । इनका रचनाकाल १७ वीं शताब्दी है । भट्टारक रत्नकीर्ति की नेमिनाथ बीनती नामक कृति भी है । ९२. राजुल का बारहमासा ( कवि पद्मराज)
बारहमासा शैली में लिखित यह एक सुन्दर रचना है 1
रचयिता : रचनाकाल
I
इस कृति के रचयिता सत्रहवीं शताब्दी के ही कवि पद्मराज हैं। सम्भवतः ये ही पद्मराज " अभयकुमार प्रबन्ध” के रचयिता हैं और ये खरतरगच्छीय आचार्य जिनहंस के प्रशिष्य और पुण्यसागर के शिष्य थे । विवेच्य रचना की एक प्रति बधीचन्द जी के मन्दिर, जयपुर के शास्त्र भण्डार में गुटका नं० ९२ वेष्ठन १०९८ में है । इनका रचनाकाल १७ वीं शताब्दी का है । नेमिनाथ रास ( मुनि अभयचन्द )
९३.
हिन्दी में लिखित नेमिनाथ विषयक रास साहित्य में प्रस्तुत कृति का महत्त्वपूर्ण स्थान है। रचयिता : रचनाकाल
इसके रचनाकार मुनि अभयचन्द्र हैं, जो भट्टारक कुमुदचन्द्र के योग्य शिष्य थे और ये संवत् १६८५ (१५२८ ई०) में गद्दी पर विराजमान हुए । नेमिनाथ रास का सृजन विक्रम की सत्रहवीं शती के उत्तरार्द्ध में किया था । इसकी प्रति गुटका नं० ५३ वेष्ठन ५९२ में भट्टारकीय दिगम्बर जैन मन्दिर अजमेर के शास्त्र भण्डार में है । कवि की एक अन्य प्रसिद्ध कृति “चन्दागीत” है जिसमें कालिदास के मेघदूत के विरही यक्ष की भाँति राजुल भी अपना सन्देश चन्द्रमा के माध्यम से नेमिनाथ के पास भेजती है । (यह गीत डा० कासलीवाल द्वारा संपादित पुस्तक “भट्टारक रत्नकीर्ति एवं कुमुदचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कृतित्व” में प्रकाशित किया गया है) इनका रचनाकाल १७वीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध है ।
९४. नेमिनाथ बारहमासा ( सुमतिसागर )
प्रस्तुत बारहमासा में १३ पद्यं हैं । प्रथम १२ पद्यों में विरहणी राजुल की व्यथा व्यंजित है और अन्तिम पद्य में कवि प्रशस्ति ।
रचयिता : रचनाकाल
इसके रचयिता सुमतिसागर हैं जो भट्टारक अभयनन्दी के शिष्य थे ।
१. भट्टारक रत्नकीर्ति एवं कुमुदचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कृतित्व पृ० ५२
२. वही, पृ० ५१-५२
३. द्रष्टव्य - डा० इन्दुराय जैन द्वारा लिखित "नेमिशीर्षक हिन्दी साहित्य", अनेकान्त, अक्तूबर-दिसम्बर १९८६, पृ० ११
४. वही, पृ० ११ १२ एवं द्रष्टव्य भट्टारक रत्नकीर्ति एवं कुमुदचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कृतित्व ।