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श्रीमद्वाग्भटविरचितं नेमिनिर्वाणम् : एक अध्ययन
है
चन्दन द्रव्य से चर्चित कर दिया । अब नवीन सूर्य किरणों से संसार कुंकुम द्वारा लीपा जा रहा । अन्धकार रूपी कीचड़ में फँसी हुई पृथ्वी का पर्वतरूपी उन्नत श्रृंगों से उद्धार करते हुए उदय को प्राप्त सूर्यदेव ने हजारों किरणों को फैलाकर सार्थक नाम प्राप्त किया है ।
डा० नेमिचन्द्र शास्त्री के अनुसार काव्य मूल्यों की दृष्टि से यह काव्य महत्त्वपूर्ण है । रचयिता : रचनाकाल
रचयिता, रचनाकाल (विवेचन) परिचय इसी अध्याय के “ग” भाग में दिया गया है । ५. विषष्टिशलाका पुरुष चरित (आचार्य हेमचन्द्र)
इस महाचरित में जैनों के कथानक इतिहास पौराणिक कथायें, सिद्धान्त एवं तत्वज्ञान का संग्रह है । इस ग्रन्थ में १० पर्व हैं जिनमें २२ वें तीर्थङ्कर नेमिनाथ का चरित्र ७ व ८ पर्व में रचित मिलता है ।
रचयिता : रचनाकाल
इसके रचयिता प्रसिद्ध आचार्य हेमचन्द्र हैं। बूलन ने इनकी रचना का समय सं० १२१६ से १२२८ तक माना है । (सन् १९५९ से ११७१ ई०) २
६. पुराणसागर संग्रह ( दामनन्दि आचार्य)
प्रस्तुत चरितसंग्रह में नेमिनाथ चरित्र ५ सर्गों में उपलब्ध होता है ।
रचयिता : रचनाकाल
इस ग्रन्थ के रचयिता दामनन्दि आचार्य हैं। इनका समय ११वीं से १३ वीं शताब्दी के बीच का है ।
७. अममस्वामीचरित ( मुनिनन्दसूरि )
इस काव्य में छठे सर्ग के बाद नेमिनाथ का जन्म, राजीमती का वर्णन, नेमिनाथ की दीक्षा और फिर नेमिनाथ के मोक्ष गमन की कथा का वर्णन आया है।
रचयिता : रचनाकाल
इस ग्रन्थ के कर्ता चन्द्रगच्छीय पूर्णिमामत प्रकटकर्ता श्रीमान् चन्द्रप्रभसूरि के शिष्य धर्मघोषसूरि के शिष्य समुद्रघोषसूरि के शिष्य मुनिनन्दसूरि हैं । यह ग्रन्थ वि. सं० १२५२ (सन् ११९५ ई०) में पन्तनगर में लिखा गया है ।
८. प्रत्येकबुद्धचरित (श्री तिलक सूरि चन्द्र गच्छीय)
ऋषिभाषित सूत्र में ४५ प्रत्येकबुद्धों के उपदेश संग्रहीत हैं । उनमें से २० नेमिनाथ के
उपदेश हैं । यह प्राकृत तथा संस्कृत दोनों भाषाओं में
रचित है ।
१. तीर्थङ्कर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, भाग-४, पृ०-२४ २. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग-६, पृ० ७३ ३. वही, पृ०-६३
४.
५.
वही, भाग-६, पृ० - १२७
वही, पृ० - १६०