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श्रीमद्वाग्भटविरचितं नेमिनिर्वाणम् : एक अध्ययन प्रथम सन्धि में मंगल स्तवन के अनन्तर सज्जन दुर्जन स्मरण किया गया है । तदन्तर कवि ने अपनी अल्पज्ञता प्रदर्शित की है । मगध देश और राजगृह नगर के वर्णन के पश्चात् कवि राजा श्रेणिक द्वारा गौतम गणधर से नेमिनाथ का चरित वर्णित करने के लिये अनुरोध करता है । वराड देश में द्वारवती नगरी में तीर्थङ्कर नेमिनाथ का जन्म समुद्रविजय के यहाँ हुआ ।
दूसरी सन्धि में नेमिनाथ की युवावस्था, वसन्त वर्णन, जलक्रीडा, आदि के प्रसंग, नेमिनाथ के पराक्रम से कृष्ण को ईर्ष्या, विरक्ति का प्रयास, जूनागढ़ के राजा की पुत्री से विवाह, बारात का सजधज के जूनागढ़ प्रस्थान, नेमिनाथ की दृष्टि बाड़े में बंधे चीत्कार करते पशुओं पर जाना, दयालु-हृदय पीड़ा से युक्त होना, विवाह परित्याग, पशु छुड़वाना, वन को प्रस्थान, वापस लौटाने का प्रयास विफल, अन्त में ऊर्जयन्त गिरि पर गमन और सहस्नाम वन में वस्त्रालंकार त्यागकर दिगंबर मुद्रा धारण करना आदि घटनाओं का वर्णन है ।।
- तीसरी सन्धि में राजीमति की वियोगावस्था, विरक्ति तथा तपश्चरण के लिए आत्म साधना में प्रवृत्त होना।
चौथी सन्धि में तपश्चर्या के द्वारा नेमिनाथ को कैवल्य ज्ञान प्राप्ति होना, समवशरण सभा, प्राणि कल्याणार्थ धर्मोपदेश और अन्त में निर्वाण प्राप्त करना । इस ग्रन्थ में श्रावकाचार और मुनि आचार का भी वर्णन आया है। रचयिता : रचनाकाल
___ इस चरितकाव्य के रचयिता कवि लक्ष्मण देव हैं । इस ग्रन्थ की पुष्पिकाओं में कवि ने अपने आपको रत्नदेव का पुत्र कहा है जिनकी यह एकमात्र रचना है । इसका लेखनकाल वि० सं० १५९२ है । इसकी दो पाण्डुलिपियाँ उपलब्ध है । एक पाण्डुलिपि पंचायती मन्दिर दिल्ली में सुरक्षित है । इस ग्रन्थ की दूसरी पाण्डुलिपि वि० सं० १५१० की लिखी हुई प्राप्त होती है।
हिन्दी ४५. नेमिनाथ फागु (राजशेखर सूरि)
यह एक नेमिनाथ पर रचित भक्तिप्रधान काव्य है। इसमें २७ पद्य हैं जिसमें सौन्दर्य चित्रण भी हुआ है। रचयिता : रचनाकाल
इस काव्य के रचयिता राजशेखरसूरि हैं जो हर्षपूरीयगच्छ के कोटिकगण से सम्बन्धित मुनितिलकसूरि के शिष्य थे । इस फागु की रचना कवि ने वि० सं० १४०५ (सन् १३४८ ई०) के लगभग की थी। १. तीर्थार मलवीर और उनकी आचार्य परम्परा, भाग-४, पृ०-२०८
२.वही, पृ० - २०८ ३. "नेमि शीर्षक हिन्दी साहित्य" लेख - डा० कु० इन्दुराय जैन “अनेकान्त वर्ष ३९, किरण ४, अक्तू दिसं०८६
पृ०८