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श्रीमद्वाग्भटविरचितं नेमिनिर्वाणम् : एक अध्ययन रचयिता : रचनाकाल
प्रस्तुत छन्द काव्य श्री शुभचन्द्र कवि द्वारा रचित है । ये भट्टारक शुभचन्द्र विजयकीर्ति के शिष्य थे । इनका समय वि० सं० १५३५ से १६२० (सन् १४७८ से १५६३ ई०) का
५२. नेमिनाथ रास (जिनसेन भट्टारक)
प्रस्तुत रास भी श्री नेमिनाथ के चरित्र पर चित्रित है । इस रासकाव्य में नेमि जिन का जन्म, बारात, विवाह, कंकण को छोड़कर वैराग्य ग्रहण करना, तत्पश्चात् कैवल्य प्राप्ति एवं निर्वाण लाभ, इन सभी घटनाओं का संक्षेप में वर्णन हुआ है।
यह रास प्रबन्ध काव्य है और जीवन की समस्त प्रमुख घटनाएं इसमें चित्रित हैं । समस्त रचना में ९२ पद्य हैं । इसकी प्रति जयपुर के दिगंबर जैन बड़ा मन्दिर तेरहपन्थी शास्त्र भण्डार में संग्रहीत है । रास की भाषा राजस्थानी मिश्रित है जिस पर गुजराती का प्रभाव है ।। रचयिता : रचनाकाल
प्रस्तुत रास जिनसेन भट्टारक (द्वितीय) की एकमात्र कृति है, जिसकी रचना वि० सं० १५१६ (सन् १४५९ ई०) पौष शुक्ला पूर्णिमा है । ५३. नेमिजिन वन्दना (धनपाल)
इस ग्रन्थ में अजमेर के दिगम्बर जैन मन्दिर सांवला बाग में नेमिनाथ की स्तुति की गई
रचयिता : रचनाकाल
इसके रचयिता धनपाल हैं जो कविदेल्ह के पुत्र थे। देल्ह की बुद्धि प्रकाश, विशालकीर्ति कृतियाँ उपलब्ध हुई हैं । इनके पुत्र उक्कुस्सी अच्छे कवि थे । कवि खण्डेलवाल दिगम्बर जैन पहाड़िया थे । डा० कासलीवाल ने इनका समय वि० सं० १५२५-१५९० (सन् १४६८-१५३३) माना है । ५४. नेमिचरित रास (ब्रह्मजीवयर)
यह रास काव्य भी नेमि के चरित पर रचा गया है जिसमें ११५ पद्य हैं ।'
वसन्त ऋतु के वर्णन के माध्यम से कवि ने २२ वें तीर्थङ्कर नेमिनाथ का चरित्र अंकित किया है । वसन्त वर्णन में कवि ने पुरानी रूढ़ि के अनुसार अनेक वृक्षों, फलों, फूलों के नामों की गणना की है । कथानक इस प्रकार है :
१. तीर्थकर महावर और उनकी आचार्य परम्परा, भाग-३, पृ० ३८७ २. वहीं, भाग-३, पृ० - ३८६ ३. बाई अजीतमति एवं उसमें समकालीन कवि, पृ० ९५-९६ ४. द्रष्टव्य - तीर्थर मावीर और उनकी आचार्य परम्परा, भाग-३, पृ० ३८८-३८९