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श्रीमद्वाग्भटविरचितं नेमिनिर्वाणम् : एक अध्ययन रचयिता : रचनाकाल
इस काव्य के रचयिता - कवि वल्ह (बूचिराज) हैं । कवि वल्ह या बूचिराज मूलसंघ के भट्टारक पद्मनन्दि की परम्परा में हुये हैं । ये राजस्थान के निवासी थे। ये एक अच्छे कवि थे । इनका समय पठन पाठन आदि में व्यतीत होता था । कवि अपभ्रंश तथा लोक भाषा के भी अच्छे जानकार थे । इनकी रचनाओं के आधार पर इनका समय वि० सं० की १६वीं शती प्रतीत होता है । ५६. नेमिनाथ बारहमासा (कवि वल्ह)
भगवान् नेमिनाथ पर रचित नेमिनाथ बारहमासा काव्य मिलता है जिसमें बारह महीनों में राजीमती ने अपने उद्गारों को व्यक्त किया है तथा विभिन्न महीनों चैत्र, बैसाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, विभिन्न प्रकार की विशेषताओं तथा प्राकृतिक सौन्दर्य के कारण राजीमती को उद्वेलित किया गया है और वह नेमिनाथ को सम्बोधित कर अपने भावों को व्यक्त करती है । यह कृति सरस तथा मार्मिक है। रचयिता : रचनाकाल
___ इस काव्य के रचयिता कवि वल्ह हैं । कवि का समय वि० सं० की १६वीं शती का उत्तरार्द्ध है । नेमिनाथबसन्त के सन्दर्भ में इनका परिचय इसके ठीक पूर्व दिया गया है । ५७. नेमिजिनेश्वर संगीत (कवि मंगरस)
एक नेमिनाथ पर रचित संगीत रचना है । जिसमें संगीत की अनुपम छटा है । सभी राग रागनियाँ इसके चरणों पर लेटती हैं । रचयिता : रचनाकाल
इस संगीत रचना के रचयिता कवि मंगरस हैं । इनका समय ई० सन् १५०८ है । इनका गीतिकारों तथा प्रबन्धकारों में महत्त्वपूर्ण स्थान है ।' ५८. नेमिश्वर का बारहमासा (बूचराज)
इस कृति में राग बडहानुके कुल १२ पद्य हैं जिन्हें प्रारम्भ श्रावण मास से करके आषाढ़ पर समाप्त किया है । यह गुटका दिगम्बर जैन मन्दिर नागदी बूंदी में है । ५९. नेमिनाथ बसन्त (बूचराज)
यह एक लघु रचना है जिसमें वसन्त ऋतु के आगमन का आध्यात्मिक शैली में रोचक वर्णन किया गया है।
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वही, पृ० - २३३
१. तीर्थर महीवीर और उनकी आचार्य परम्परा, भाग-४, पृ० - २३० ३. वही, भाग-३, पृ० ४४३ ४. कविवर बूचराज एवं उनके समकालीन कवि, पृ०.८७