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तीर्थङ्कर नेमिनाथ विषयक साहित्य ६०. नेमीश्वर गीत (बूचराज)
यह भी एक नेमिनाथ विषयक लघुगीति है । रचयिता : रचनाकाल
इन काव्य कृतियों के रचनाकार बूचराज हैं जो विक्रम की १६वीं शती के अन्तिम चरण के प्रमुख कवियों में से थे । इनके वचा, वल्ह, वील्ह, वल्हव नाम भी लोकप्रिय रहे तथा ये भट्टारक भुवनकीर्ति के शिष्य थे ।
बारहमासा में कवि ने अपना नाम बूचा कहकर उल्लेख किया है । ६१. नेमीश्वर को उरगानो (श्रावक चतरुमल अथवा चवरुमल)
___ यह एक "उरगानो" संज्ञक रचना है । कवि ने स्पष्ट किया है कि गुणों को विस्तार से कहने वाले काव्य को उरगानो (काव्य) कहते हैं । कवि ने नेमि द्वारा विवाह मण्डप से विरक्त हो लौट आने और वैराग्य धारण करने की मार्मिक कथा को ४५ पदों में प्रभावपूर्ण ढंग से अभिव्यक्त किया है। रचयिता : रचनाकाल
यह काव्य श्रावक चतरुमल अथवा चवरुमल द्वारा रचित है । कृति की रचना वि०सं० १५७१ (ई० सन् १५१४) में ग्वालियर में भादव बदी पंचमी सोमवार में की गई थी । कवि की यह सबसे बड़ी रचना है ।। ६२. नेमिराजमतीवेलि (कविठक्कुरसी)
इसका दूसरा नाम नेमीश्वरवेलि भी है । इसमें नेमिनाथ और राजुल के विवाह प्रसंग से लेकर वैराग्य धारण करने एवं अन्त में निर्वाण प्राप्त करने तक की संक्षिप्त कथा दी गई है। सम्पूर्ण वेलि में १० दोहे हैं । ५ पद्धडिया छन्द हैं । इसकी भाषा ब्रज है तथा राजस्थानी का प्रभाव है । नेमि-राजमति बेलि की पाण्डुलिपियाँ राजस्थान के कितने ही भण्डारों में उपलब्ध होती हैं । जिनमें जयपुर, अजमेर के ग्रन्थागार भी हैं । परन्तु २० छन्दों वाली इस वेलि को डा० कासलीवाल ने “कविवर बूचराज एवं उनके समकालीन कवि" पुस्तक में प्रकाशित करवा दिया
रचयिता : रचनाकाल
इस वेलि के रचयिता कविवर ठक्कुरसी हैं । ठक्कुरसी राजस्थान के ढूंढाड क्षेत्र के कवि थे । इन्होंने स्वयं अपनी कृति “मेघमाला कहा” में ढूंढाहड शब्द का उल्लेख किया है । १. आषाढ़ चडिया भराड बूचा नेमि अजउ न आइया ।।'
नेमीस्वर का बारहमासा, “कविवर बूचराज एवं उनके समकालीन कवि", पृ० - २३ २. कविवर बूचराज एवं उनके समकालीन कवि, पृ० १५९-१६० ३. वही, पृ० २४०-२४१
४.वही, पृ० - २३८