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श्रीमद्वाग्भटविरचितं नेमिनिर्वाणम् : एक अध्ययन का उत्तरोत्तर आदर्श प्रेम, पति-पत्नी का अलौकिक स्नेह, राजीमती का वैराग्य, साध्वी जीवन, नेमिनाथ की बालक्रीड़ा, दीक्षा, कैवल्यज्ञान, मोक्ष-गमन का सुन्दर वर्णन है। रचयिता : रचनाकाल
इस चरितकाव्य के रचयिता तपागच्छ के हरिविजयसूरीश्वर के पट्टधर कनकविजय पण्डित के प्रशिष्य और वाचक विवेकहर्ष के शिष्य गुणविजयगणि हैं । इन्होंने सौराष्ट्र के सुरपत्तन शहर के पास द्रगबन्दर में वि०सं० १७६८ (सन् १७११ ई०) को आषाढ़ पंचमी को यह ग्रन्थ प्रारंभ किया और श्रावण षष्ठी को समाप्त किया था । १८. लघुत्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (मेघविजय उपाध्याय) ____ यह चरित्रकाव्य त्रिषष्टिशलाका पुरूषचरित के अनुकरण पर निर्मित है । प्रस्तुत चरितकाव्य में भी नेमिनाथ का चरित अंकित किया गया है ।। रचयिता : रचनाकाल
इसके रचयिता मेघविजय उपाध्याय हैं । इन्होंने अन्य ग्रन्थों के अन्त में प्रशस्तियों दी है जिनका रचनाकाल वि०सं० १७०९-१७५० (सन् १६५२-१७०३ ई०) है। १९. नेमिनरेन्द्रस्तोत्र (जगन्नाथ कवि) ____ जगन्नाथ कवि संस्कृत के एक अच्छे कवि हैं जिनके द्वारा २२ वें तीर्थङ्कर के ऊपर एक स्तोत्र लिखा गया है, वह है "नेमिनरेन्द्रस्तोत्र" । रचयिता : रचनाकाल
ये भट्टारक नरेन्द्रकीर्ति के शिष्य थे । इनका समय १७ वीं शती का अन्त तथा १८वीं शताब्दी का प्रारम्भ था । इन्होंने वि० सं० १७२९ (सन् १६७२ ई०) में वाग्भट्टालंकार की कविचन्द्रिका नाम की टीका लिखी है।' २०. हरिवंशपुराण (जिनसेन)
यह महाकाव्य की शैली पर लिखा एक पुराण है । इस ग्रंथ का मुख्य विषय हरिवंश में उत्पन्न हुए २२ वें तीर्थङ्कर नेमिनाथ का चरित्र वर्णित करना है । इसका दूसरा नाम "अरिष्टनेमिपुराणसंग्रह" भी है । नेमिनाथ का इतना वर्णन इससे पूर्व अन्यत्र कहीं देखने को नहीं मिलता है। रचयिता : रचनाकाल
___ ग्रन्थ की समाप्ति पर ६६ वें सर्ग में एक महत्त्वपूर्ण प्रशस्ति दी गई है, जिससे ज्ञात होता है कि इसके रचयिता पुन्नाट संघीय जिनसेन हैं । इनके गुरु का नाम कीर्तिषेण और दादागुरु
१.जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग-६, पृ० - ११७ ३.तीवर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, भाग-४, पृ०-९१
२.वही, पृ० - ७७ ४.जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग-६, पृ०-४३