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जैन चरित काव्य : उद्भव एवं विकास रचयिता : रचनाकाल
__पृथ्वीचन्द्रचरित के रचयिता रूपविजयगणि हैं जो तपागच्छीय सविग्न शाखा के पदमविजयगणि के शिष्य थे। इन्होंने पृथ्वीचन्द्रचरित्र की रचना वि० सं० १८८२ (१८२५ ई०) में की थी।
विंशति शताब्दी १५६. समुद्रदत्तचरित' : (भूरा मल्ल शास्त्री) ____यह चरित ९ सर्गात्मक काव्य है जिसमें कुल ३४५ पद्य हैं । अन्त में ४ प्रशस्ति पद्य हैं जिनमें अन्य ग्रन्थों का उल्लेख किया गया है । १५७. महावीर चरित' (वीरोदय काव्य) : (भूरा मल्ल शास्त्री) __यह चरितकाव्य २२ सर्गात्मक महाकाव्य है, जिसमें भगवान् महावीर के चरित के साथ प्रारम्भ में भारत की दुर्दशा का चित्रण बड़ा ही हृदयद्रावक है । अन्त में जैन धर्म के हास पर चिन्ता व्यक्त की गई है। रचयिता : रचनाकाल
उपर्युक्त दोनों चरितों के रचयिता भूरामल्ल शास्त्री हैं । ये ही मुनि दीक्षा के बाद ज्ञानसागर महाराज कहलाये । आपका जन्म राजस्थान के जयपुर के समीपवर्ती राणौली ग्राम में सेठ चतुर्भुज के घर वि० सं० १९४८ (१८९१ ई०) में हुआ था । आपने वि० सं० २००४ में ब्रह्मचर्य प्रतिमा, २०१२ में क्षुल्लक दीक्षा और सं० २०१४ में आचार्य शिवसागर जी महाराज से खानियां जयपुर में मुनिदीक्षा धारण की थी। उनकी सुदर्शनोदय तथा दयोदय आदि अन्य रचनायें भी उपलब्ध हैं।
इन चरितकाव्यों की श्रृंखला से स्पष्ट है कि जैन कवि ईसा की सातवीं शतादी से लेकर निरन्तर काव्य रचना में संलग्न हैं । यद्यपि वे प्राकृत भाषा की परम्परा से लेकर काव्य के क्षेत्र में प्रविष्ट हुये थे किन्तु उन्होंने भाषागत साम्प्रदायिक बन्धनों को तोड़कर संस्कृत को भी प्राकृत भाषा के समान ही महत्त्व प्रदान किया तथा एक समृद्ध एवं ऐश्वर्यशाली परम्परा का निदर्शन प्रस्तुत किया है।
१.पृथ्वीचन्द्रचरित, प्रशस्ति पद्य, ५-११ २.दि० जैन जैसवाल समाज अजमेर, वी०नि० सं० २४९५ में प्रकाशित ३.मुनिज्ञानसागर, जैन ग्रन्थमाला, १९६८ ई० में प्रकाशित ४.सुदर्शनोदय काव्य, ग्रन्थकार का संक्षिप्त परिचय