________________
जैन चरित काव्य : उद्भव एवं विकास १६८१ कार्तिक शुक्ला त्रयोदशी में पूर्ण की थी। १४७. जयकुमारचरित : (ब्रह्मचारी काम राज)
जयकुमारचरित १३ सर्गात्मक महाकाव्य हैं जिसमें जयकुमार और उनकी पत्नी सुलोचना का चरित वर्णित किया गया है । इस काव्य का नाम जयपुराण भी है । रचयिता : रचनाकाल
जयकुमारचरित के रचयिता ब्रह्मचारी कामराज हैं । विक्रम की १७ वीं शती के उत्तरार्द्ध में इन्होंने जयकुमारचरित की रचना की थी। १४८. श्रीपालचरित' : (ज्ञान विमल सरि)
श्रीपालचरित अत्यन्त संक्षिप्त किन्तु प्रवाहमयी गद्य भाषा में लिखा गया है । बीच-बीच में पद्य भी मिलते हैं। रचयिता : रचनाकाल
श्रीपालचरित के रचयिता ज्ञानविमलसूरि हैं । जो नयविमलसूरि के शिष्य थे । इन्होंने श्रीपालचरित्र की रचना संस्कृत गद्य में वि० सं० १७४५ (१६८८ ई०) में की थी। १४९. सुषेण चरित : (जगन्नाथ)
इसमें धर्मनाथ तीर्थंकर के सेनापति सुषेण अथवा वरांगकुमार के सौतेले भाई सुषेण का वर्णन है । अभी तक काव्य उपलब्ध नहीं है । रचयिता : रचनाकाल
सुषेण चरित के रचयिता जगन्नाथ हैं । इन्होंने १७ वीं शती में इस काव्य की रचना की है। १५०. शान्तिनाथचरित' : (मेघविजय उपाध्याय)
यह चरित नैषधीयचरित प्रथम सर्ग की समस्यापूर्ति के रूप में लिखा गया है । यह ६ सर्गात्मक काव्य है। १५१. लघुत्रिषष्टिश्लाकापुरुषचरित : (मेघविजय उपाध्याय)
यह १० सर्गों का काव्य है । काव्यतत्त्वों की दृष्टि से इस काव्य का विशेष महत्त्व नहीं है । इसमें हेमचन्द्राचार्य के त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित का अनुकरण किया गया है । रचयिता : रचनाकाल
उपर्युक्त दोनों चरितों के रचयिता मेघविजय उपाध्याय हैं । ये कृपाविजय गणि और उपाध्याय जिनप्रभसूरि के शिष्य थे। इनके ग्रन्थों का रचनाकाल १६५२-१७०३ ई० माना जाता है।
१.तीर्थहर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, भाग-४, पृ०-८५ २.जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग-६, पृ० -१७९ ३.देवेन्द्र लाल भाई जैन पुस्तकोद्धार ग्रन्थमाला बम्बई १९२१ ई० में प्रकाशित ४.श्रीपालचरित प्रशस्ति पध-२० ५.अभयदेवसूरि ग्रन्थमाला बीकानेर से प्रकाशित
६.जैन साहित्य का वृहद् इतिहास, भाग -६, पृ० -७८