________________
४२
श्रीमद्वाग्भटविरचितं नेमिनिर्वाणम् : एक अध्ययन हुये हैं । सोमसेन गुणभद्र के शिष्य थे। इनके संबंध में लिखा है कि “विबुधविविधजनमनइंदीवर विकासनपूर्ण शशिसमानानां .... सोमसेन भट्टारकाणान् ।
इन्होंने वि० सं० १६५६ में रामपुराण की रचना की अतः सोमसेन का समय १७वीं शती है। १४३. नेमिनाथचरित' : (अजय राज पाटणी) . प्रस्तुत काव्य और उसके रचयिता का वर्णन इसी अध्याय के "ख" भाग 'नैमि विषयक साहित्य" पृष्ठ ७७ क्रम सं० ११७ के अन्तर्गत किया गया है। १४४. शान्तिनाथपुराण : (श्री भूषण)
शान्तिनाथपुराण में १६वें तीर्थंकर शान्तिनाथ का जीवन चरित्र वर्णित है । इसकी कथावस्तु १६ सर्गों में विभक्त है। रचयिता : रचनाकाल
शान्तिनाथचरित के रचयिता श्री भूषण हैं । ये काष्टासंघ के नन्दीगच्छ के आचार्यों की परम्परा में समाविष्ट हैं जिसमें रामसेन के अन्वय में क्रमशः नेमिसेन → धर्मसेन - विमलसेन
→ विशालकीर्ति → विश्वसेन → विद्याभूषण → श्रीभूषण → के नाम हैं । इन्होंने शान्तिनाथपुराण की रचना वि० सं० १६६९ (१६१२ ई०) में की थी। १४५. प्रद्युम्नचरित' : (रत्ल चन्द्र गणि)
यह १६ सर्गात्मक महाकाव्य है । इसमें श्रीकृष्ण, सत्यभामा, रूक्मणी आदि का भी चरित्र वर्णित है। रचयिता : रचनाकाल
प्रद्युम्नचरित के रचयिता रत्नचन्द्रगणि हैं जो तपागच्छीय शान्तिचन्द्र के शिष्य थे । इन्होंने प्रद्युम्नचरित की रचना सूरत में वि० सं० १६७४ (१६१७ ई०) में विजयादशमी के दिन की थी। १४६. मुनिसुव्रतपुराण : (ब्रह्म कृष्ण दास)
इसमें २०वें तीर्थकर मुनिसुव्रत का जीवन अंकित है । जिसमें २३ सन्धि या सर्ग हैं और ३०२५ पद्य हैं। रचयिता : रचनाकाल
मुनिसुव्रतकाव्य के रचयिता ब्रह्मकृष्णदास हैं । ब्रह्मकृष्णदास काष्ठासंघ के भट्टारक भुवनकीर्ति के पट्टधर भट्टारक रत्नकीर्ति के शिष्य थे। इन्होंने इस काव्य की रचना वि० सं०
१.भट्टारक सम्प्रदाय, लेखांक-३४
२.तीचार महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, भाग-३, पृ०-४४४ ३.देवचन्द्र लाल भाई पुस्तकोद्धार फण्ड सूरत,१९२० ई० में प्रकाशित ४.तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, भाग-३, पृ०-४४० ५.वी० वी० एण्ड कम्पनी खारगेट भावनगर १९१७ ई० में प्रकाशित
६. जिनरलकोश, पृ० २६४ ७.तीर्थदुर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, भाग-३, पृ०-४४०