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श्रीमद्वाग्भटविरचितं नेमिनिर्वाणम् : एक अध्ययन
अष्टादश शताब्दी १५२. अजितपुराण : (अरुण मणि)
इस पुराण में तीर्थङ्कर अजितनाथ का जीवनवृत्त वर्णित किया गया है । इसकी पाण्डुलिपि जैन सिद्धान्त भवन आरा में है। रचयिता : रचनाकाल
इस पुराण के रचयिता अरुणमणि हैं । ये भट्टारक श्रुतकीर्ति के प्रशिष्य और बुधराघव के शिष्य थे । अरुणमणि ने औरंगजेब के राज्यकाल में वि० सं० १७१६ में जहानाबाद नगर वर्तमान नई दिल्ली के पार्श्वनाथ जिनालय में अजितनाथपुराण की समाप्ति की है । अतः कवि का समय १८ वीं शती है। १५३. भक्तामर चरित : (विश्व भूषण भट्टारक) ___ भक्तामर चरित में ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़मरोड़ कर प्रस्तुत किया गया है । तथा विभिन्न समय के विभिन्न विद्वानों को समकालीन बताया गया है । अतएव ऐतिहासिक दृष्टि से यह ग्रन्थ कोई महत्व नहीं रखता है। रचयिता : रचनाकाल
इस चरितकाव्य के रचयिता विश्वभूषण भट्टारक हैं । ये अनन्त भूषण भट्टारक के शिष्य थे। इनका विशेष परिचय प्राप्त नहीं है । इनका समय अठारहवीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध ठहरताहै। १५४. गौतमचरित : (रूप चन्द्रगणि)
- यह ११ सर्गात्मक काव्य है । इसमें जैन संघ का संक्षिप्त इतिहास प्रस्तुत किया गया है। काव्यत्व की दृष्टि से यह मनोरम है । रचयिता : रचनाकाल
गौतमचरित के रचयिता रूपचन्द्रगणि हैं जो दत्तगच्छ के थे । उन्होंने सं० १८०७ (१७५० ई०) में जोधपुर नगर में अभयसिंह राजा के राज्यकाल में गौतमचरित (गोतमीयकाव्य) की रचना की थी। इस पर वि० सं० १८५२ (१७९५ ई०) में अमृत धर्म के शिष्य उपाध्याय क्षमाकल्याणगणि ने गौतमीयप्रकाश नामक टीका लिखी थी।
एकोनविंशति शताब्दी १५५. पृथ्वीचन्द्र चरित' : (रूप विजय गणि)
यह ११ सर्गात्मक काव्य है । जो संस्कृत गद्य में लिखा गया है । बीच-बीच में कहीं-कहीं संस्कृत और प्राकृत के पद्य भी उद्धत हैं । १.तीर्थावर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, भाग-४, पृ०-९० २.जिनरलकोश, पृ०२८९ ३.देवचन्द्र लालभाई जैन पुस्तकोद्धार संस्था सूरत, १९४० ई० में प्रकाशित ४.जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग-६, पृ० - १९६ ५.जैन धर्म प्रसारक सभा भावनगर, १९३६ ई० में प्रकाशित