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जैन चरित काव्य : उद्भव एवं विकास
१३९. रामचरित' : (देव विजय गणि)
रामचरित दश सर्गात्मक गद्यकाव्य है । इसमें राक्षस, वानर वंश की उत्पत्ति, रावण - कुम्भकरण - विभीषण- सीता-राम-लक्ष्मण आदि का वर्णन तथा अन्त में मर्यादा पुरुषोत्तम राम की मुक्ति का वर्णन है ।
रचयिता : रचनाकाल
पाण्डवचरित तथा रामचरित के रचयिता देवविजयगणि हैं जो तपागच्छीय विजयदानसूरि के प्रशिष्य और संगविजय के शिष्य थे । इन्होंने अहमदाबाद में रहकर वि० सं० १६६० में पाण्डवचरित की रचना की थी। इसका संशोधन शान्तिचन्द्र के शिष्य रत्नचन्द्र ने किया था ।२ १४०. पार्श्वनाथपुराण: (चन्द्र कीर्ति)
यह पन्द्रह सर्गात्मक काव्य है जो २७१० ग्रन्थ प्रमाण है । इसमें भगवान पार्श्वनाथ का चरित्र वर्णित है । इसकी रचना वि० सं० १६५४ (१५९७ ई०) में श्री भूषण भट्टारक के शिष्य चन्द्रकीर्ति ने वैसाख शुक्ला सप्तमी को गुरुवार के दिन देवगिरि के पार्श्वनाथ जिनालय में की थी ।
इसकी एक हस्तलिखित प्रति श्री ऐलक पन्नालाल सरस्वती भवन बम्बई में है । १४१. ऋषभदेवपुराण: (चन्द्र कीर्ति)
इसमें भगवान ऋषभदेव की कथा २५ सर्गों में विभक्त है ।
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रचयिता : रचनाकाल
उपर्युक्त दोनों काव्यों के रचयिता चन्द्रकीर्ति हैं । चन्द्रकीर्ति के गुरु श्री भूषण भट्टारक काष्ठासंघीय थे । वे काष्ठासंघ के नन्दी तट-गच्छ के भट्टारक थे । प्रो० विद्याधर जोहरापुरकर ने उनकी परम्परा को इस प्रकार बतलाया है : धर्मसेन विमलसेन→ विशालकीर्ति → विश्वसेन → विद्याभूषण → चन्द्रकीर्ति । प्रो० जोहरापुरकर ने चन्द्रकीर्ति का समय वि० सं० १६५४-१६८१ (१५९७ -१६२४ ई०) माना है ।" इन्होंने सं० १६५४ में देवगिरि पर पार्श्वनाथपुराण की रचना की थी।
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१४२. रामपुराण : (सोमसेन)
रामपुराण में रामकथा वर्णित है। इस कथा का आधार रविषेण का पद्मचरित है । कथावस्तु ३३ अधिकारों में विभक्त है । भाषा सरल होते हुये भी प्रवाहमयी है रचयिता : रचनाकाल
रामपुराण के रचयिता सोमसेन हैं। ये सेनगण और पुष्करगच्छ की भट्टारक परम्परा में
१. हीरालाल हंसराज जामनगर १९१५ ई० में प्रकाशित
३. जिनरलकोश, पृ० २४६-२४७
५. भट्टारक सम्प्रदाय, पृ०-२९९
२. जैन साहित्य का वृहद् इतिहास, भाग ६, पृ० - ५४
४. जैन साहित्य का वृहद् इतिहास, भाग - ६, पृ० १२५, पाद टिप्पणी- ६
६. पार्श्वनाथपुराण, प्रशस्ति