________________
१६
श्रीमद्वाग्भटविरचितं नेमिनिर्वाणम् : एक अध्ययन आह्लादनांकित इस काव्य की भाषा सरल, सालंकार, तथा वर्णनानुकूल है । काव्य में यत्र-तत्र धार्मिकता एवं दार्शनिकता भी है । अधिकांश काव्य अनुष्टुप् छन्द में लिखा गया है, पर वसन्ततिलका छन्द का भी प्रयोग हुआ है। रचयिता : रचनाकाल
___ वासुपूज्यचरित काव्य के रचयिता श्री वर्धमानसूरि हैं । ग्रन्थ प्रशस्ति के अनुसार ये नागेन्द्रगच्छीय विजयसिंहसूरि के शिष्य थे । वासुपूज्य चरित की रचना वि० सं० १२९९ (सन् १२४२ ई) में अणहिल्लपुर में हुई थी। यह ही इनका एकमात्र काव्य उपलब्ध होता है। ३२. धर्मशर्माभ्युदय : (महाकवि हरिश्चन्द्र)
इस महाकाव्य में १५वें तीर्थङ्कर धर्मनाथ का चरित वर्णित है । इसकी कथावस्तु २१ सर्गों में विभक्त है । धर्म-शर्म (धर्म और शान्ति) के अभ्युदय के वर्णन का लक्ष्य होने से कवि ने प्रस्तुत महाकाव्य का यह नामकरण किया है । काव्य की कथावस्तु उत्तरपुराण से ग्रहण की
३३. जीवंधर चम्पूः (महाकवि हरिश्चन्द्र)
जीवन्धर चम्पू में पुण्यपुरुष जीवन्धर का चरित वर्णित किया गया है । इसकी कथावस्तु ११ स्तम्भों में विभक्त है।
रचयिता : रचनाकाल
दोनों काव्यों के रचयिता महाकवि हरिश्चन्द्र हैं । ग्रन्थ में दी गयी प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि कवि राजमान्य कुल के थे । ये दिगम्बर मतानुयायी थे। पाटन भण्डार के उपलब्ध धर्मशर्माभ्युदय की सं० १२९७ की सर्वप्रथम रचना उपलब्ध है । अतः विद्वानों का मत है कि उक्त काव्य की रचना सं० १२५७ से १२८७ के बीच कभी हुई है। ३४. मुनिसुव्रतचरित': (अर्हदास)
यह काव्य १० सों में विभक्त शास्त्रीय रचना है, जिसमें २०वें तीर्थकर मुनिसुव्रत की कथा वर्णित है । इसका कथानक गुणभद्र के उत्तरपुराण पर आधारित तथा भाषा आलंकारिक
३५. पुरुदेव चम्यू: (अर्हदास) ___यह चम्पूकाव्य आदि तीर्थंकर ऋषभदेव (आदिनाथ) के चरित पर वर्णित है । इसमें १० स्तवक हैं । कवि ने गद्य व पद्य दोनों ही प्रौढ़ रूप में लिखे हैं । इसमें काव्यात्मकता के सभी १.द्रष्टव्य - जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग-६, पृ०-१०२ २.काव्यमला ८, निर्णयसागर प्रेस, बम्बई, १९३३ ३.जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग-६, पृ० ४८९-४९० ४.देवकुमार ग्रन्थमाला, जैन सिद्धान्त भवन, आरा, १९१९ में प्रकाशित ५.जिनरत्नकोश, पृ०-३१२ ६.भारतीय ज्ञानपीठ दिल्ली,१९७२ ई०