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श्रीमद्वाग्भटविरचितं नेमिनिर्वाणम् : एक अध्ययन
६८. ऋषभदेवचरित : (वाग्भट)
यह चरितकाव्य संप्रति उपलब्ध नहीं है । परन्तु वाग्भट ने अपने काव्यानुशासन में “यथा स्वोपज्ञऋषभदेवचरित महाकाव्ये" कहकर एक उदाहरण प्रस्तुत किया है ।
रचयिता : रचनाकाल
ऋषभदेवचरित के रचयिता काव्यानुशासन प्रणेता वाग्भट हैं। ये वाग्भट नेमिनिर्वाण तथा वाग्भटालंकार के प्रणेता से भिन्न हैं। ये मेवाड़ के प्रसिद्ध जैन श्रेष्ठी नेमिकुमार के पुत्र और राहड के अनुज थे । इनका समय ईसा की चौदहवीं शताब्दी है ।
६९. स्थूलभद्र चरित' : ( जयानन्द सूरि )
इस काव्य में स्थूलभद्र का चरित अंकित है । श्वेताम्बर साहित्य में स्थूलभद्र मान्य व्यक्ति हैं । इनका उल्लेख विविध प्राचीन ग्रन्थों में मिलता है ।
रचयिता : रचनाकाल
स्थूलभद्र चरित के रचयिता जयानन्दसूरि हैं। ये तपागच्छीय सोमतिलकसूरि के शिष्य थे । इनका समय ईसा की चौदहवीं शताब्दी है ।
पंचदश शताब्दी
७०. शान्तिनाथचरित : (भट्टारक सकल कीर्ति)
यह सोलह अधिकारों में विभक्त है । इसमें पौराणिक तत्त्व अधिक हैं ।
७१. वीरवर्धमानचरित' : (भट्टारक सकल कीर्ति)
यह चरित १९ परिच्छेदों वाला महाकाव्य है । इसके बीच-बीच में दार्शनिक तथा धार्मिक विषयों का समावेश किया गया है।
७२. ऋषभदेव चरित : (भट्टारक सकल कीर्ति)
यह २० सर्गों का महाकाव्य है जिसमें भगवान ऋषभदेव का चरित अंकित किया गया
है ।
७३. यशोधरचरित' : (भट्टारक सकल कीर्ति)
इसमें आठ सर्ग हैं जिनमें यशोधर महाराज का लोकप्रिय चरित वर्णित किया गया है । इसमें मुख्य रूप से अहिंसा का महत्त्व प्रतिपादित है ।
१. यत्पुष्पदन्तमुनिसेनमुनीन्द्रमुख्यैः, पूर्व कृतं सुकविभिस्तदहंविधितनु ।
हास्याय कस्य ननु नास्ति तथापि सन्तः, श्रण्वन्तु कंचन ममापि सुयुक्तिसूक्तिम् ॥ (काव्यानुशासन निर्णयसागर द्वि०सं० पृ० . १५ ) २. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग ५, पृ० - ११५
३.श्रेष्ठी देवचन्द्र लालभाई जैन पुस्तकोद्धार ग्रन्थमाला १९१५ ई० में प्रकाशित
४. जिनरत्नकोश, पृ० ४५५
७. जिनवाणी प्रचारक कार्यालय, कलकत्ता, १९३४ में प्रकाशित
५. जिनवाणी प्रकाशन कलकत्ता, शांतिपुराण नाम से १९३९ ई० में प्रकाशित
६. भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, १९७४ ई० में प्रकाशित ८. हस्तलिखित प्रति पार्श्वनाथ शास्त्र भण्डार जयपुर में है