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श्रीमद्वाग्भटविरचितं नेमिनिर्वाणम् : एक अध्ययन भट्टारकों में भट्टारक यशः कीर्ति का नाम आया है। यों तो यशः कीर्ति नामक कई आचार्य हुवे हैं । श्री जोहरा पुरकर ने इनका समय १४८६-१४९७ वि० सं० माना है। परमोपाचल के मूर्तिलेखों में इनका निर्देश वि० सं० १५१० तक पाया जाता है। अतः इनका समय वि० सं० पन्द्रहवीं शती का अन्तिम भाग तथा १६ वीं का पूर्वभाग है। ८९. अन्यकुमारबस्ति : (जयानन्द)
धन्यकुमारचरित पाँच अध्यायात्मक काव्य है । इसमें धन्यकुमार श्रेष्ठीकुमार का चरित वर्णित किया गया है। ९०. स्थूलमचरित : (जवानन्द)
स्थूलभद्रचरित में स्थूलभद्र का चरित्र निबद्ध किया गया है । रचयिता : रचनाकाल
इन दोनों धन्यकुमारचरित व स्थूलभद्रचरित के रचयिता जयानन्द हैं, जे खरतरगच्छीय जिनशेखर के प्रशिष्य और जिनधर्मसूरि के शिष्य थे। इन्होंने धन्यकुमार चरित की रचना वि० सं० १५१० (१४५३ ई०) में की थी ९१. भोजचस्ति' : (राजबल्लम)
यह ग्रन्थ पाँच प्रस्तावों में विभक्त है । प्रस्तावों का नामकरण कथावस्तु के आधार पर किया गया है, जिनमें महाराजा भोज का चरित्र निबद्ध है । भारतीय परम्परा में महाराज भोज बड़े ही लोकप्रिय हैं। इस ग्रन्थ में विशेष रूप से अन्नदान की महिमा का प्रतिपादन किया गया है। ९२. चित्रसेनपद्मावतीचरित' : (राजबल्लभ)
इस चरितकाव्य में महाराजा चित्रसेन एवं महारानी पद्मावती का चरित्र निबद्ध है। इसका दूसरा नाम पद्मावतीचरित्र भी मिलता है। रचयिता : रचनाकाल
इन दोनों काव्यों के रचयिता राजबल्लभ हैं । सर्गान्त पुष्पिका से ज्ञात होता है कि राजबल्लभ धर्मघोषगच्छ के वादीन्द्र श्री धर्मसूरि की सन्तान परम्परा में श्री महीतिलक सूरि के शिष्य थे। डा० बी० सी० एच० छाबड़ा तथा एस० शंकरनारायणन् राजबल्लभ का समय १४४० ई० या उसके कुछ पहले मानते हैं। इसी प्रकार डा० हीरालाल जैन और डा० ए० एन० उपाध्ये उनका समव१५ वीं शताब्दी के मध्य मानते हैं। १.तीकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, भाग-३, पृ० ४०९
२. वही, पृ०-४१० ३.जैन आत्मानंद सभा भावनगर, वि० सं०१९७३ ई० में प्रकाशित ४.देवचन्द्र लालभाई जैन पुस्तकोद्धार फण्ड,१९१५ ई० में प्रकाशित ५ जिनरलकोश, पृ०.१८७ ६.भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन,१९६४ ई० में प्रकाशित ७.हीरालाल हंसराज जामनगर, १९२४ ई० में प्रकाशित ८.इतिधर्मघोषगच्छेवादीन्द्र श्रीधर्मसूरिसन्ताने श्रीमहीतिलकसूरिशिष्य पाठक राजबल्लभ कृते ... | सन्ति पुमिका ९.भोजचरित, इन्ट्रोडक्शन, पृ०-५
१०. वही, ग्रन्थमाला सम्पादकीय