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श्रीमद्वाग्भटविरचितं नेमिनिर्वाणम् : एक अध्ययन रचना वि० सं० १५३६ (१४७९ ई०) में हुई थी। १०८. सप्तव्यसनचरित' : (सोम कीति)
सप्तव्यसनचरित में सातों व्यसनों के कारण दुःख भोगने वाले व्यक्तियों के चरित्रों को अंकित किया गया है। द्यूतव्यसन में युधिष्ठिर की, मांस बसन में बक राजकुमार की, मदिरा व्यसन में यादवों की, वेश्याव्यसन में चारुदत्त की, शिकार में चक्रवर्ती ब्रह्मदत की, चोरी में शिवभूति ब्राह्मण की और पर स्त्री व्यसन में प्रतापी रावण की कथा निबद्ध है। इसकी श्लोक सं० २१९७ है । इसकी रचना वि० सं० १५२९ मे मापसुदी प्रतिपदा सोमवार के दिन हुई थी। रविता : रमाकाल
- उपर्युक्त प्रधुम्नचरित, यशोधर चरित तथा सप्तव्यसनवरित के रचयिता सोमकीर्ति हैं । सोमकीर्ति लक्ष्मीसेन के प्रशिष्य और भीमसेन के शिष्य थे । श्री विद्याधर जोहरपुरकर ने काष्ठासंघ-नंदीतटगच्छ कालपट्ट में सोमकीर्ति का समय वि० सं० १५२६-१५४० (१४६९-१४८३ई०) माना है।' १०९. शान्तिनावपरित : (भा चन्द्र सारित
यह चरित संस्कृत गद्य में लिखित ६ प्रस्तावों में विभक्त काव्य है । इसमें तीर्थंकर शान्तिनाव का पूर्व ११ भवों सहित वर्णन किया गया है । ग्रंथकार द्वारा लिखित मूलप्रति लालबाग बम्बई के एक ग्रन्थ भंडार से मिली है। .. रचयिता : रचनाकाल
शान्तिनाथचरित के रचयिता प्रवचन्द्रसूरि हैं। ये पूर्णिमागच्छ के पावचन्द्रसूरि के प्रशिष्य और जयचन्द्रसूरि के शिष्य थे। इन्होंने शान्तिनाथचस्ति की रचना वि० सं० १५३५ (१४७८ ई०) में की थी। ११०. यशोवरचरित : (श्रुत सागर सूरि)
यशोधरचरित संस्कृत गद्यात्मक ग्रन्थ है । केवल मंगलाचरण और प्रशस्ति पद्य में है। यह सिद्धचक्रपाठ का माहात्म्य दिखाने के लिये लिखा गया था। १११. श्रीपालवरित : (श्त सागर सूरि) ___ इस परितकाव्य में श्रीपाल का आख्यान निबद्ध है। रचयिता : स्वनाकाल
उपर्युक्त दोनों ग्रन्थों के रचयिता श्रुतसागरसूरि हैं। ये मूलसंघ सरस्वतीमच्छ बलात्कारगण के आचार्य थे। इनके गुरु का नाम विधानन्दि था । विद्यानन्दि देवेन्द्रकीर्ति के शिष्य और पद्मनन्दि १.विनरत्यकोश, पृ० ३२० २.हिन्दी अनुवाद के ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय बम्बई १९१२ ई० में प्रकाशित ३.सप्तव्यसन चरिख, प्रशस्ति पद्य ६-७
___४.भट्टारक सम्प्रदाय, पृ०० २९८ ५.जैन धर्म प्रसारक सभा भावनगर वि० सं० १९६७ में प्रकाशित ६.विनरत्नकोश, पृ० ३७९