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श्रीमद्वाग्भटविरचितं नेमिनिर्वाणम् : एक अध्ययन
रचयिता : रचनाकाल
शालिभद्रचरित काव्य के रचयिता का नाम विनयसागरगणि है । इनका समय १६वीं शती है।
१२७. जम्बूस्वामी चरित' : ( कविराज मल्ल)
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जम्बूस्वामीचरित त्रयोदश सर्गात्मक काव्य है । जिसके प्रथम चार सर्गों में जम्बूस्वामी के पूर्वभवों का आख्यान है । पाँचवें सर्ग से जम्बूस्वामी की कथा वर्णित है । अनुष्टुप् छन्द में रचित यह काव्य अत्यधिक रमणीय है ।
रचयिता रचनाकाल
जम्बूस्वामीचरित के रचयिता कविराजमल्ल हैं जो आगरा निवासी थे । ये अकबर बादशाह के समकालीन थे । इन्होंने जम्बूस्वामी चरित की रचना वि० सं० १६३२ (१५७५ ई०) में की थी ।
१२८. पार्श्वनाथचरित : (हम विजय )
यह काव्य छः सर्गों में विभक्त है । इसमें ३०३६ पद्य हैं । अन्त में १६ प्रशस्ति पद्य हैं । रचयिता : रचनाकाल
पार्श्वनाथचरित काव्य के रचयिता हेमविजय हैं। सर्गान्त पुष्पिका से ज्ञात होता है कि हेमविजयगणि, कमलविजयगणि के शिष्य थे जो भट्टारक हीरविजयसूरि और विजयसेनसूरि की परम्परा से संबद्ध थे ।' ग्रन्थ प्रशस्ति के अनुसार काव्य की रचना वि० सं० १६३२ (१५७५ई०) में हुई थी तथा यह ३१६० अनुष्टुप् प्रमाण हैं । 4
१२९. साम्बप्रद्युम्नचरित : (रवि सागर गणि)
इस चरितकाव्य में १६ सर्ग हैं। प्रद्युम्न और उनके अनुज साम्ब कुमार का वर्णन है । रचयिता : रचनाकाल
साम्बप्रद्युम्नचरित के रचयिता रविसागरगणि हैं । इनके गुरु तपागच्छीय हरिविजय सन्तानीय राजसागर थे । सहजसागर और विजय सागर इनके अध्यापक थे । इन्होंने इस चरितकाव्य की रचना माडलिनगर में खेंगार राजा के राज्यकाल में वि० सं० १६४५ (१५८८ई०) में की थी ।७
१३०. जम्बूस्वामिचरित : (विद्या भूषण भट्टारक)
जम्बूस्वामि के चरित पर रचा काव्य उपलब्ध होता है ।
१. माणिक्यचन्द्र दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला बम्बई १९११ ई० में प्रकाशित २. जिनरत्नकोश, पृ० १३२
४. पार्श्वनाथचरित, सर्गान्त पुष्पिका
६. हीरालाल हंसराज जामनगर १९१७ ई० में प्रकाशित
३. श्री मुनिमोहनलाल जैन ग्रन्थमाला सरस्वती फाटक बनारस १९१६ में प्रकाशित
५. पार्श्वनाथचरित, प्रशस्ति, १४-१५
७. द्रष्टव्य जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग - ६, पृ० १४७