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जैन चरित काव्य : उद्भव एवं विकास
१२१. करकण्डुचरित: (भट्टारक शुभ चन्द्र)
इसमें करकण्डु का चरित वर्णित है । करकण्डु श्वेताम्बर सम्प्रदाय मान्य प्रमुख ४ प्रत्येकबुद्धों में से एक हैं । दिगम्बर आचार्यों ने भी इनके ऊपर स्वतन्त्र रचनायें लिखी हैं । १२२. चन्दनाचरित : (भट्टारक शुभ चन्द्र)
यह भी एक महाकाव्य है जिसमें महासती चन्दना का चरित वर्णित है ।
१२३. जीवम्बरचरित: (भट्टारक शुभ चन्द्र )
जीवन्धरचरित में जीवन्धरकुमार का प्रिय आख्यान निबद्ध है । इसका प्रणयन वि० सं० १५९६ (१५३९ ई०) में हुआ था ।
१२४. श्रेणिकचरित : (भट्टारक शुभ चन्द्र )
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श्रेणिकचरित का नाम श्रेणिकपुराण भी है। इसकी हस्तलिखित प्रति नया मन्दिर दिल्ली ग्रन्थ भण्डार में है ।
रचयिता : रचनाकाल
उपर्युक्त वर्णित पाँचों काव्यों के रचयिता भट्टारक शुभचन्द्र हैं जो विजयकीर्ति के शिष्य थे । प्रो० विद्याधर जोहरापुरकर ने इनका भट्टारक काल वि० सं० १५७३-१६१३ (१५१६-१५५६ ई०) माना है । किन्तु डा० नेमिचन्द्र शास्त्री इनका भट्टारक काल वि० सं० १५३५-१६२० (१४७८-१५६३ ई०) मानते हैं । अतः इनका रचनाकाल १६वीं शताब्दी का प्रथम चरण निश्चित है ।
१२५. होलिरेणुकाचरित : ( पं० जिन दास)
यह चरितकाव्य सात अध्यायों में विभक्त है। इसका दूसरा नाम होलिकारेणुपर्वचरित भी है । इसमें पंचनमस्कार मन्त्र का माहात्म्य प्रतिपादित किया गया है ।
रचयिता : रचनाकाल
होलिकारेणुका चरित काव्य के रचयिता पं० जिनदास हैं जो रणस्तम्भ दुर्ग के समीप नवलक्षपुर के निवासी हैं । कवि ने ग्रन्थ प्रशस्ति में ग्रन्थ का रचनाकाल वि० सं० १६०८ ( १५५१ ई०) दिया है।
१२६ . शालिभद्रचरित : (विनय सागर गणि)
इस काव्य की रचना वि० सं० १६२३ (१५६६ ई०) में हुई थी ।' अन्य कोई जानकारी उपलब्ध
नहीं है।
१. जिनरलकोश, पृ० ३९९
३. भट्टारक सम्प्रदाय, पृ० १५८
५. जिनरलकोश, पृ० ४६३
७. जिनरत्नकोश, पृ० ३८२
२. द्रष्टव्य अनेकान्त, वर्ष ४, किरण-५, जून १९४१, पृ० ३५२
४. तीर्थङ्कर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, भाग-३, पृ०-३६४ ६. तीर्थङ्कर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, भाग-४, पृ०-८४