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श्रीमद्वाग्भटविरचितं नेमिनिर्वाणम् : एक अध्ययन
९७. सुदर्शनचरित : (विद्या नन्दि )
काव्य १२ अध्याय हैं जिनमें सुदर्शनमुनि का चरित्र वर्णित है । सुदर्शनमुनि को जैन परम्परा में महावीर का समकालीन अन्तः कृत्केवली माना गया है ।
रचयिता : रचनाकाल
इस काव्य के रचयिता विद्यानन्दि हैं जो मूलसंघ सरस्वतीगच्छ बलात्कारगण के भट्टारक प्रभाचन्द्र के प्रशिष्य और देवेन्द्रकीर्ति के शिष्य थे। डा० गुलाबचन्द्र चौधरी ने इनका कार्यकाल वि० सं० १४८९-१५३८ (१४३२-१४८१ ई०) माना है। सुदर्शनचरित की रचना गंगधरपुरी में वि० सं० १५१३ (१४५६ ई०) में हुई थी ।
९८. पृथ्वीचन्द्रचरित : (सत्यराज गणि)
यह गद्य पद्यात्मक ग्रन्थ है । जिसमें पृथ्वीचन्द्र का चरित्र वर्णित है ।
९९. श्रीपालचरित : ( सत्यराज गणि)
इस चरितकाव्य में श्रीपाल का चरित्र निबद्ध है ।
रचयिता : रचनाकाल
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उपर्युक्त दोनों चरितों के रचयिता सत्यराजगणि हैं । ये पूर्णिमा गच्छीय गुणसमुद्रसूरि के प्रशिष्य और पुण्यरत्नसूरि के शिष्य थे। इन्होंने पृथ्वीराजचन्द्रचरित की रचना वि० सं० १५३५ (१४७८ ई०) में की थी।
१००. अंजनाचरित : (भुवन कीर्ति)
अंजनाचरित में हनुमान की माता एवं पवनञ्जय की पत्नी सती अन्जना का आख्यान निबद्ध है ।
रचयिता : रचनाकाल
अंजनाचरित के रचयिता भुवनकीर्ति हैं । श्री विद्याधर जोहरापुरकर ने भुवनकीर्ति को भट्टारक सकलकीर्ति का शिष्य मानते हुए इनका समय वि० सं० १५०८-१५२७ (१४५१-१४७० ई०) माना है।' सुदर्शनचरित में भुवनकीर्ति को देवेन्द्रकीर्ति भट्टारक का शिष्य बतलाया गया है । जिनरत्नकोश में भी इनको देवेन्द्रकीर्ति भट्टारक का शिष्य कहा गया है ।" श्री विद्याधर जोहरापुर ने बलात्कारगण ईडरशाखा के काटपट्ट में सकलकीर्ति के बाद भुवनकीर्ति को रखा है किन्तु इनके मध्य देवेन्द्रकीर्ति को होना चाहिए ।
१. भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, १९७० ई० में प्रकाशित
३. जैन साहित्य का वृहद् इतिहास, भाग - ६, पृ० १९८
५. यशोविजय जैन ग्रन्थमाला भावनगर, वि० सं० १९७६ में प्रकाशित
६. विजयदानसूरीश्वर ग्रन्थमाला सूरत, वि० सं० १९९५ में प्रकाशित
८. भट्टारक सम्प्रदाय, बलात्कारगण ईडरशाखा कालपट्ट १५८ ९. सुदर्शनचरित, १२ / ४९
१०. जिनरलकोश, पृ० ४४४
२. जिनरत्नकोश, पृ० ४४४
४. सुदर्शनचरित, प्रस्तावना, पृ० १७
७. पृथ्वीचन्द्रचरित, पृ० ७४
११. भट्टारक सम्प्रदाय, पृ० १५८